निज स्वार्थ में कर्णधारों ने, जन जन को गुट में बाँटा,
राजा महाराजा धर्मगुरु मठाधीश, स्वार्थ हित सबने हाँका।
कहीं क्षेत्रवाद की बातें, कुछ धर्म कर्म आधार बने थे,
जाति में बाँटा पंडितों ने, यह आरोप नहीं साँचा।
हर धर्म जाति में भेद बहुत, कर्म आधार सदा देखा,
शिया सुन्नी अहमदिया, मुस्लिम में भेद बहुत देखा।
ईसाई भी तो अलग अलग, अनेक गुटों में बँटे हुए,
श्वेतांबर दिगम्बर पीताम्बर, अलग जैन धर्म देखा।
बस एक धर्म सनातन था, जाति का कोई भेद न था,
कर्म आधार शास्त्रों में, मानव मानव में भेद न था।
कौरव कुल के कुरू बने ज्यों, पांडु गुट वाले पांडव,
अनेक देश कुरुक्षेत्र युद्ध में, जाति का उल्लेख न था।
अ कीर्ति वर्द्धन
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