मंगाया टिफिन कभी खाया समोसा
जिसपे किया ऑंख बंद कर भरोसा
उसने दिया मुझको धोखे पे धोखा
किससे कहें अपने दिल की कहानी
सुनता नहीं कोई जिसे भी परोसा
पढ़ लिख के बच्चे हुए दूर घर से
रहते नहीं पास जिन्हें पाला-पोसा
कब तक करें हम बातें स्वयं से
भाता नहीं रोज़ इडली वा डोसा
जब भी मुझे कभी भूख लगी तो
मंगाया टिफिन कभी खाया समोसा
खुश हैं उसी में मुझे जो मिला है
भाग्य को अपने कभी नहीं कोसा
सुनते सभी की मगर 'जय' किसी की
बातें इधर की उधर नहीं खोंसा
*
~जयराम जय
पर्णिका,बी-11/1,कृष्ण विहार आवास विकास,कल्याणपुर,कानपुर-208017(उ.प्र.)
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