मैं धरती पर बोझ क्यों बनूं

मैं धरती पर बोझ क्यों बनूं

हंसता खिलखिलाता रहूं, बिना बात ही क्यों तनूं।
काम भलाई का करूं, मैं धरती पर बोझ क्यों बनूं।
मैं धरती पर बोझ क्यों बनूं


प्रेम के तराने लब सजा दूं ,मैं गीत सुरीले से गाऊं।
सुख दुख जीवन के पहलू, हर हाल में मुस्कुराऊं।
अपनापन ले प्रेम के मोती, शब्द सुरीले तान लूं धनु।
वाणी के तीर क्यों चलाऊं, निज अकड़ में क्यों तनु।
मै धरती पर बोझ क्यों बनूं


घनघोर घटाएं छाई, निराशाओं के मेघ घने छाए।
पग पग आंधी तूफान, मुश्किलें भी आंख दिखाएं।
बात बतंगड़ कर, तुड़वा लूं हड्डी पसली क्यों हनु।
मेहनत के रस्ते चल दूं, क्यों कलह का कारण बनू।
मैं धरती पर बोझ क्यों बनूं


रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थानरचना स्वरचित व मौलिक है।
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