मन हुआ क्यों अनमना है ?
जयराम जय
गीत को मैंने चुना है
मन हुआ क्यों अनमना है
बादलों के साथ रहना
नीर साथ अनवरत बहना
डर भला क्या आंधियों से
हर दिशा में पेंग भरना
पर नहीं तो क्या हुआ
व्योम का संबल घना हे
छटपटाती भावनाएं
नेह वाली कामनाएं
अब न थकती दिख रही हैं
स्वप्न देखी वजर्नाएं
प्यार की दीवार दिल की
कामना से घर बना है
साथ साहस है तसल्ली
जग उडाए खूब खिल्ली
कर्म को मैने सराहा
फिर कहां है दूर दिल्ली
लक्ष्य कैसे कह सकेगा
पास में आना मना है
गुनगुनाते पार पाना
संग समय के मुस्कराना
हर तरफ चर्चा यही है
हो गया है जय दिवाना
उसको धरा क्या,व्योम क्या,
गांव क्या ,क्या परगना है
*
~ जयराम जय
'पर्णिका'बी-11/1कृष्ण विहार,कल्याणपुर,कानपुर-208017 (उ.प्र.)
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