अमीर की बारात

अमीर की बारात

जय प्रकाश कुँवर
मुझे निमंत्रण कार्ड मिला था ,
एक शादी में जाने को ।
बन ठन कर शामिल हुआ भी ,
मैं तब अपना फर्ज निभाने को ।।
नाच रहे थे खुब बाराती ,
बैंड बाजा के ताल पर ।
मेरी नजरें टिकी हुई थी ,
एक बच्चे के हाल पर ।।
साधारण सा कपड़ा पहने ,
पैर में था, चप्पल हवाई ।
नाच नाच कर थका बेचारा ,
अब खाने की बारी आई ।।
सबने थामा प्लेट और सब ,
लगे उठाने व्यंजन नाना ।
बच्चे ने भी प्लेट उठाकर ,
शुरू किया व्यंजन सजाना ।।
दूल्हे के पापा ने पुछा ,
कौन है तूं और कहां से आया ।
कैसे शामिल है बारात में ,
किसने है तुमको बुलाया ।।
रख दो प्लेट और भाग यहां से ,
भुखे नंगे सब आ जाते हैं ।
हम र‌ईसों की बारात में ,
भिखारी कहां से समा जाते हैं ।।
रख कर प्लेट कर रोनी सी सूरत ,
वह तो वहां से चला गया ।
पर मेरे मन को अशांत कर ,
खुशी घाव में बदल गया ।।
कैसे हैं ये अमीर लोग और ,
कैसा है यह समाज हमारा ।
खाने से ज्यादा फेंकते हैं ,
पर पाता नहीं भूखा गरीब बेचारा ।।
चाहे जितना खर्च करो तुम ,
चाहे जितना करो दिखावा ।
भर न सके तुम पेट गरीब का ,
तो यह सब है, ढोंग छलावा ।।
ढोल पीटना नाच दिखाना ,
शगुन नहीं है तेरा यार ।
भुखा गरीब जो हाय किया तो ,
तेरा सब शगुन है बेकार ।।
रिश्ते नाते,संगी साथी को ,
खुब खिलाओ खुब निभाओ ।
पर जब तुम शुभ कार्य करो तब ,
दरिद्र नारायण को अवश्य खिलाओ ।।
सब खाकर भी तृप्त न होते ,
तेरे सब जो अपने होते ।
भर पेट भोजन पा कर बन्दे ,
गरीब ही तेरा शगुन मनाते ।।
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