यह वर्ष नया वह वर्ष गया

यह वर्ष नया वह वर्ष गया

संपादक जी ने कहा," नए वर्ष पर कुछ लिखिए"। मैं सोचने लगा कि नया वर्ष पर क्या लिखा जाए, यह वर्ष तो नया हुआ नहीं ।चिंतन के बाद लगा कि वर्ष नया हो या नहीं हो ,मैं मानूँ या नहीं मानूँ- बस तो नया हो ही गया ।डायरियाँ बदल गईं, रिस्टस बदल गए ,कार्यालय में काम करने वाले बाबू की छुट्टियाँ नई हो गईं, जब सब नया ही हो गया तो फिर नया वर्ष मुझे मानने न मानने में क्या फर्क पड़ता है । हमारे पूर्वज यानी हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है-"बसन्त आता नहीं ले आया जाता है ।"इसी तरह हमें भी मान लेना चाहोए कि नया वर्ष आता नहीं ले आया जाता है। जहां तक विवेचन का प्रश्न है लगता है हर दिन नया है। जो 31 दिसंबर का आज का दिन बीत गया मेरे जीवन में बिल्कुल नया नया बनकर आया था और वह बासी हो गया, पुराना हो गया, भूत हो गया। भविष्य की चिंता और भूत से सबक लेकर वर्तमान को सुसज्जित करना वर्तमान को बनाना ही सबसे बड़ा पर्व है ।मेरे हाथ में न भूत है ना भविष्य है, वर्तमान है, वर्तमान को छोड़कर भूत और भविष्य की चिंता करना समीचीन नहीं लगता।
तो नया वर्ष आ गया ।बीते वर्ष से जो भूलें हुई हैं उन्हें सजाकर सवार कर नए वर्ष में उसका प्रयोग करना ,उस पर प्रयोग करना और उसके लिए प्रयोग करना हमारा धर्म होना चाहिए। वैसे हमारे यहाँ वर्ष आरंभ होने की परम्परा चैत्र शुक्ल पक्ष परिवा से है। अब हम कहें कि वही वर्ष नया है तो हमारे हमारा एक वर्ग वैसाख ,जेठ,आषाढ़ नहीं जानता है।वह एक दो तीन -उनचालिस,(उनतालिस),उवचास,उनसठ,उनहत्तर,उनासी,नवासी भी नहीं जानता है ।वह जनवरी-फरवरी से ही गिन कर दिसंबर आते-आते पूरा करता है। मैकाले का भूत सबके सिर पर सवार हो गया है। उसने ब्रिटिश पार्लियामेंट में अपना जो भाषण दिया था उसमें स्पष्ट कहा था कि मैंने ऐसा कार्य किया है जिससे भारत कभी मुक्त नहीं हो सकेगा। अपने पिता को लिखे पत्र में भी उसने यही कहा था, पिताजी मैंने ऐसा कार्य किया है कि बेचारे हिंदुस्तानी बाध्य हो जाएंगे अपनी ही बात को गलत सिद्ध करने पर । वे बेचारे हमारी गुलामी करेंगे और हम उनके शासक होंगे ।"आज वही हो रहा है ।आदरणीय डॉक्टर मदन मोहन झा की कृपा से विद्यालयों के सत्र तो बदलकर अप्रैल से मार्च कर दिया गया । वित्तीय वर्ष भी अप्रैल से मार्च होता है। साल का पहला दिन खुशी का दिन होता है। इसलिए अंगरेज लोग एक अप्रैल को फुल डे मनाते हैं । उनके यहाँ होली-दीवाली ऐसा पर्व तो होता नहीं ,तो बेचारे क्या मनाऐँ! बस ले देकर फूल डे ।वर्ष आरंभ होने के 15 दिन पहले हम लोग होली मनाते हैं ,खुशियों का पर्व । सब लोग खुश होते हैं। इससे जनवरी तो ऐसा कुछ है नहीं, परंतु 1 जनवरी तो 1 जनवरी ही है । डायरी, कैलेन्डर,रजिस्टर सब नया हो गया तो वर्ष भी नया हो गया ।फिर नूतन वर।ष का अभिनन्दन करें तो क्यओ नहीं ।

इसलिए खुलकर बोलें-खिलकर बोलें -नया वर्ष मंगलमय हो ।हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

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