एक गरीब आदमी

एक गरीब आदमी 

एक बहुत ही गरीब आदमी था,
ढकने को ढंग का कपड़ा ना था।

सर्दी की वो बडी कातिल रात थी,
कुछ ज्यादा ही ठंड पड़ रही थी।

फटी पुरानी शॉल ओढ़ रखी थी,
सर्दी से कहां उसे बचा पा रही थी।

शीत लहर में रुह भी काँप रहीं थीं,
बेचारे की ठंड में जान जा रही थी।

जब लाकर दी किसी ने चाय,
तभी उसे सूझा एक उपाय।

लड़कियाँ इकट्ठी करके उन्हें जमायी,
माचिस से फिर वहाँ आग लगाई।

उसकी किस्मत तो पलटी खा गई ,
कुछ ही देर में जोरदार बारिश आ गई।

पहले ही वो ठंड से मर रहा था,
बारिश में भीग कर कराह रहा था।

लेकिन जैसे कोई फरिश्ता आया,
उसे वह अपने घर ले आया।

कपड़े बदलवाकर पहले चाय पिलाई,
खाना खिला कर उसकी भूख मिटाई।

उसकी खुशी का ठिकाना ना था,
किस्मत पर उसे गुमान आ रहा था।

बारिश बंद हुई फिर वह लौट गया,
उन्हीं किस्मत के थपेड़ों में खो गया!
स्व रचित मौलिक रचना ✍सुमित मानधना 'गौरव', सूरत 😎
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