हे अटल
तुम्हें अटल नही अब अर्जुन बन जाना होगा।
दुश्मन के चक्रव्युह का
तुमको भेदन करना होगा।
अभिमन्यु की कपट मौत का
बदला तुमको लेना होगा।
समर प्रांगण बहुत बडा है,
कुटिल यहाँ दुश्मन की चालें,
हर चाल का बदला तुमको
नैतिकता से लेना होगा।
हे अटल
तुम्हें अटल नही
अब अर्जुन बन जाना होगा।
अनेक रथी और महारथी
कौरव दल से मिले हुये,
सत्ता सुख पाने की खातिर,
जयचंद हैं बने हुये।
उनको उनकी ही चालों से,
तुमको धूल चटाना होगा।
हे अटल
तुम्हें अटल नही
अब अर्जुन बन जाना होगा।
जीवन पथ में नैतिकता का
तुमको दीप जलाना होगा।
अ कीर्तिवर्धन
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