सच्चे पथ को चुना है
जब से दुनियाँ में आया हूँ
तब से ही भागे जा रहा।
कभी खुद के लिए तो
कभी अपनो के लिए।
न जाने मुझे क्या क्या
सच में करना पड़ रहा।
और जीवन के पथ पर
साथ सभी के चल रहा।।
बहुत कुछ खो कर के
यहाँ तक तो आ पहुँचा।
कभी गमों में जिया तो
कभी खुशियों में जिया।
पर अपनी आत्मा को
कभी मरने नहीं दिया।
इसलिए तो अब तक
मानवता जिंदा बची रही।।
न मन मेरा मैला था
न तन पर अब कपड़ा है।
भेष दिगम्बर धारण करके
अब सबका त्याग किया है।
और छोड़ छाड़ मोह माया
और लोभ आदि को।
आत्म कल्याण के पथ पर
चलने का सच्चा मार्ग चुना है।।
जय जिनेंद्रसंजय जैन "बीना" मुंबई
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