बचपन के दिन
मुझे याद हैबचपन के वो दिन
कागज की कश्ती बनाकर
पानी में तैरना
बरसात के दिनों में
उमड़ते-घुमड़ते बादलों के बीच
कल्पना के घोड़े दौड़ना
और
मनचाहे चरित्रों को तलाशना।
हाँ मुझे याद है
फर्श पर पानी का फैलाना
छप-छप करना
माँ का गुस्सा
दादी का प्यार
बहन का दुलार
सब याद है मुझे।
मैं आज भी
आकाश में ताका करता हूँ
बादलों के बीच
अपनी कल्पना तलाशा करता हूँ।
मुझे याद है
बरसात के बाद
इन्द्रधनुष का दिखना
उसके रंगों में
अपने मन को रंगना
कहीं पीछे से
सूरज की किरण का चमकना
फिर
सुनहरे बादलों में
अपने सतरंगी ख्वाब बुनना।
हाँ मुझे याद है
उन्ही बादलों के बीच
पशु -पक्षियों की
आकृति तलाशना।
मैं नहीं भुला
अपना बचपन
फिर भी विवश हूँ
बचपन में न लौट पाने के कारण।
चाहता हूँ मैं
फिर से बनाऊँ
रेत के घरोंदे
मिटटी में खेलूँ
दौडूँ-भागूँ
लुका छिपी खेलूँ |
हाँ मैं बचपन में लौटना चाहता हूँ |
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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