ज्ञान और आस्था के पैगम्बर

ज्ञान और आस्था के पैगम्बर

(श्वेता-हिन्दुस्तान फीचर सेवा)
झारखंड के संजय कच्छप ने गरीब बच्चों तक ज्ञान का भंडार पहुंचाया तो बिहार के जहानाबाद के गनौरी पासवान ने दुर्गम पहाड़ी पर विराजमान भगवान शंकर के मंदिर तक पहुंचने के लिए पत्थर की सीढ़ियां बना दीं। समाज में इस तरह का कार्य करने वाले अनुकरणीय होते हैं। बिहार में ही पहाड़ काटकर अस्पताल तक मार्ग बनाने वाले दशरथ मांझी से गनौरी पासवान को प्रेरणा मिली थी। अब दूसरे लोग इनसे प्रेरित होंगे। झारखंड के संजय कच्छप की तारीफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गत 27 नवम्बर को मन की बात कार्यक्रम में की थी। गांवों में पुस्तकालय अब भी दिवास्वप्न जैसे लगते हैं लेकिन लाइब्रेरी मैन संजय कच्छप ने जिस तरह से प्रेरणा दी है, उसका नतीजा भी शीघ्र नजर आएगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बीते रविवार (27 नवबर) को मन की बात कार्यक्रम में झारखंड के लाइब्रेरी मैन का जिक्र किया था। लाइब्रेरी मैन के नाम से मशहूर कोई और नहीं बल्कि दुमका में पदस्थापित विपणन पदाधिकारी संजय कच्छप हैं। बता दें कि संजय के काम की तारीफ में बॉलीवुड अभिनेता सोनू सूद भी कसीदे गढ़ चुके हैं। संजय कच्छप मूलतः चाइबासा के रहने वाले हैं। पीएम मोदी ने कहा कि झारखंड के संजय कच्छप राज्य के गरीब बच्चों के सपनों को नई उड़ान दे रहे हैं। अपने विद्यार्थी जीवन में संजय जी को अच्छी पुस्तकों की कमियों का सामना करना पड़ा था। ऐसे में उन्होंने ठान लिया कि किताबों की कमी से वह अपने क्षेत्र के गरीब बच्चों का भविष्य अंधकारमय नहीं होने देंगे। अपने इस मिशन की वजह से आज वह झारखंड के कई जिलों में बच्चों के लिए लाइब्रेरी मैन बन गए हैं। पीएम मोदी ने भी मन की बात में कहा था, संजय जी ने जब अपनी नौकरी की शुरुआत की थी तो उन्होंने पहला लाइब्रेरी अपने पैतृक गांव में स्थापित किया था। नौकरी के दौरान उनका जहां भी तबादला होता था, वहां वह गरीब व आदिवासी बच्चों के लिए लाइब्रेरी खोलने के मिशन में जुट जाते थे, ऐसा करते हुए उन्होंने झारखंड के कई जिलों में लाइब्रेरी खोल दी है। लाइब्रेरी खोलने का उनका यह मिशन सामाजिक आंदोलन का रूप ले रहा है। पीएम मोदी ने आगे कहा, संजय जी हांे या जतिन जी, ऐसे प्रयासों के लिए मैं इनकी सराहना करता हूं। जानकारी के मुताबिक अब तक इन्होंने कोल्हान क्षेत्र में 40 पुस्तकालय की स्थापना करने में सफलता हासिल की है।

पीएम मोदी ने इसी कार्यक्रम में दुमका के कुमारपाड़ा निवासी राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित एनएसएस के स्वयंसेवक जतिन कुमार के सामाजिक योगदानों की भी सराहना की थी। सरकारी नौकरी में आने के बाद सबसे पहले संजय कच्छप ने अपने पैतृक गांव में पहले मोहल्ला पुस्तकालय की स्थापना की। इस सराहनीय काम में उन्हें कई समान विचारधारा वाले लोगों ने मदद की। तब से लेकर अब तक उन्होंने कोल्हान प्रमंडल के तीन जिलों पश्चिमी सिंहभूम, सरायकेला-खरसावां और पूर्वी सिंहभूम जिले में लगभग 40 पुस्तकालयों की स्थापना की है। इन पुस्तकालयों की मदद से दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले गरीब और आदिवासी छात्रों को बड़ी मदद मिली है। वहीं इस वर्ष बाल दिवस पर दुमका स्थित सरकारी आवास में भी पुस्तकालय स्थापित किया है। मन की बात कार्यक्रम के बाद संजय कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हौसला आफजाई से मन प्रफुल्लित है, लेकिन अब आने वाले दिनों में जिम्मेवारी बढ़ गई है। कोशिश होगी कि इस मिशन को और व्यापक स्वरूप दें। उन्हांेने कहा कि वर्ष 2002 में जब वे स्नातक की पढ़ाई के दौरान संघर्ष कर रहे थे तो उन्होंने महसूस किया कि चाइबासा जैसे दूरदराज के इलाकों में किताबों तक पहुंच पाने की कमी के कारण सिविल सेवाओं में प्रवेश करने का उनके बचपन का सपना मुश्किल था। दूसरे गरीब बच्चों का यह सपना न टूटे, इसलिए पुस्तकालय खुलवा रहा हूं।

इसी तरह का अनुकरणीय काम गनौरी बाबा ने किया। जहानाबाद जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर गंज प्रखंड के जारु बनवरिया गांव के समीप ऊंची पहाड़ी पर अवस्थित बाबा योगेश्वरनाथ मंदिर में गनौरी भजन कीर्तन के लिए जाते थे। गनौरी घंटों मशक्कत के बाद वहां पहुंच पाते थे। गनौरी बताते हैं कि कई बार कांटे और नुकीले पत्थरों से घायल भी हो जाते थे। महिलाएं तो और भी मुश्किल से पहुंच पाती थीं। यह देख गनौरी पासवान ने बाबा योगेश्वरनाथ धाम तक रास्ता सुगम बनाने की ठान ली और फिर पासवान ने एक नहीं बल्कि दो रास्ते बना दिए। गनौरी पासवान ने पत्थरों को काटकर सीढ़ी बनाने की शुरुआत की और मंदिर तक पहुंचने के लिए एक नहीं बल्कि दो रास्ते बना दिए। गनौरी पासवान ने एक रास्ता जारू गांव की ओर से और दूसरा बनवरिया गांव की ओर से बनाया है। लोगों के सहयोग और अपने पूरे परिवार के श्रमदान से लगभग आठ वर्षों में 400 सीढ़ियां बनाने का काम पूरा किया। गनौरी पासवान कभी ट्रक ड्राइवर हुआ करते थे। ड्राइवरी छूटी तो दो घरों में राजमिस्त्री का काम करने लगे। छुट्टियों में घर आने पर पासवान लोक संगीत और गायन में गहरी रुचि लेते थे। गांव की गायन मंडली के साथ जारु बनवरिया गांव के समीप पहाड़ पर अवस्थित बाबा योगेश्वर नाथ मंदिर में भजन कीर्तन के लिए जाते थे। पासवान बताते है कि पहाड़ पर अवस्थिति योगेश्वर नाथ मंदिर तक पहुंचने के लिए गांव की गायन मंडली को काफी ज्यादा समस्यओं का सामना करना पड़ता था। वहीं, काफी समय और कठिन परिश्रम कर लोग कीर्तन तक लोग पहुंच पाते थे। पासवान ने तभी मन में संकल्प लिया कि बाबा योगेश्वर नाथ धाम तक की यात्रा को वह हर हाल में सुगम बनाएंगे। यहीं से पत्थरों को काटकर सीढ़ी बनाने की शुरुआत की। गनौरी पासवान की एक और खासियत है। पहाड़ की तलहटियों में जाकर पुरानी मूर्तियों की भी खोज करते हैं। गनौरी पासवान पुरानी मूर्तियों की खोज करने के बाद उन मूर्तियों को योगेश्वर नाथ मंदिर के रास्ते पर स्थापित कर देते हैं। पासवान ने काले पत्थर भगवान बुद्ध की छह फीट की विशाल प्रतिमा की भी खोज की है, जिसका जिक्र इतिहास के पन्नों में दर्ज है। गनौरी पासवान कहते हैं कि उन्हें पता नहीं कहां से ऐसी शक्ति मिलती है जिससे वह दिन रात पहाड़ों में छेनी हथौड़ी लेकर खोए रहते हैं। अब एक ही संकल्प है कि योगेश्वर नाथ मंदिर को पर्यटक स्थल के रूप में पहचान मिले। इस काम में पत्नी व उनके बेटे का भरपूर सहयोग मिल रहा है।
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