साहित्य सम्मेलन के संस्थापक-अध्यक्ष मालवीय जी, अटल जी और डा उषा रानी दीन की मनायी गयी जयंती

साहित्य सम्मेलन के संस्थापक-अध्यक्ष मालवीय जी, अटल जी और डा उषा रानी दीन की मनायी गयी जयंती 

  • अपनी पीढ़ी के प्रतिनिधि गीतकार हैं आचार्य विजय गुंजन 

  • काव्य-संग्रह 'मेरा रीता का रीता मन' का हुआ लोकार्पण,

पटना, २५ दिसम्बर। हिन्दी नवगीत में विशिष्ठ स्थान रखनेवाले गीतिधारा के महत्त्वपूर्ण कवि आचार्य विजय गुंजन अपनी पीढ़ी के प्रतिनिधि-कवि हैं। छंद और गीत को दिव्य-सौंदर्य प्रदान करने वाले उपमा-अलंकारों का भी इन्हें विशद ज्ञान है। इनके गीतों में भाषा का हृदय-स्पर्शी माधुर्य है। वीणा के मधुर झंकार की भाँति इनके गीत कुँवारे मन को स्पंदित करते हैं।
यह बातें रविवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित पुस्तक-लोकार्पण-समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने जयंती पर अखिल भारत वर्षीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के संस्थापक अध्यक्ष भारत-रत्न महामना पं मदन मोहन मालवीय, दूसरे भारत-रत्न और देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी तथा विदुषी कवयित्री प्रो उषारानी दीन को उनकी जयंती पर श्रद्धा-पूर्वक स्मरण किया।
समारोह का उद्घाटन करते हुए, सुप्रसिद्ध चिकित्सक और पूर्व केंद्रीय मंत्री डा सी पी ठाकुर ने कहा कि कवि का मन रीता नहीं भरा हुआ होना चाहिए। भरे मन से भारी रचना हो सकती है। यह दुखद है कि आज हर जगह रीतापन दिखाई देता है। हमें समाज के हर क्षेत्र में आयी रिक्तियों को भरने की चेष्टा करनी चाहिए।
पुस्तक पर अपना विचार रखते हुए, विद्वान समालोचलक डा कलानाथ मिश्र ने कहा कि गीत में छंद और लय अनिवार्य तत्त्व है। यही गीत को आनंदप्रद बनाते हैं। गीतकार गुंजन जी की विशेषता है कि उन्होंने छंद की शक्ति को समझा और उसका सफल प्रयोग किया है। जिस गीत में
सम्मेलन के उपाध्यक्ष और भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी डा उपेंद्रनाथ पाण्डेय, डा मधु वर्मा, डा कल्याणी कुसुम सिंह, आकाशवाणी केंद्र, पटना के कार्यक्रम अधिशासी अंशुमान झा, डा रामरक्षा मिश्र 'विमल', डा अर्चना त्रिपाठी, डा ध्रुव कुमार तथा अभिलाषा कुमारी ने भी पुस्तक पर अपने विचार रखे तथा कवि को शुभकामनाएँ दी।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र ने वाणी-वंदना से किया। वरिष्ठ कवि और सम्मेलन के उपाध्यक्ष मृत्युंजय मिश्र'करुणेश', डा शंकर प्रसाद, बच्चा ठाकुर, डा मेहता नगेंद्र सिंह, कुमार अनुपम, डा सुधा सिन्हा, डा पूनम सिन्हा श्रेयसी, मशहूर शायरा तलत परवीन, डा मोहम्मद नसरुल्लाह 'नसर', जय प्रकाश पुजारी, अशोक कुमार सिंह, डा आर प्रवेश, श्याम बिहारी प्रभाकर, विजय शंकर मिश्र, अर्जुन प्रसाद सिंह, संजीव कुमार श्रीवास्तव, बिन्देश्वर प्रसाद गुप्त आदि कवियों ने विविध भावों की काव्य-रचनाओं से सम्मेलन-परिसर को गीत-गुंजित किया। मंच का संचालन डा अर्चना त्रिपाठी और डा सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया।समारोह में वरिष्ठ कवि श्रीराम तिवारी, डा सुलक्ष्मी कुमारी, मधुरानी लाल, दीपक ठाकुर, डा मुकेश कुमार ओझा, डा बी एन विश्वकर्मा, कवि गणेश झा, बाँके बिहारी साव, देवेंद्र नारायण ओझा, नूतन सिन्हा, डा अमरनाथ प्रसाद, डा राकेश दत्त मिश्र, रामाशीष ठाकुर, नेहाल कुमार सिंह 'निर्मल' डा चंद्र शेखर आज़ाद, शैलेंद्र मुज़फ़्फ़रपुरी, विजय कुमार दूबे, दुःखदमन सिंह आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
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