बिटिया तू हो गई है अब स्यानी
मेरी प्यारी बिटिया रानी तू हो गई है अब स्यानी,
मेरे कलेजे के टुकड़े अब न करों कोई मनमानी।
समझा रहें है आपको आज आपकें नाना-नानी,
हर लड़की की विधाता ऐसी लिखता है कहानी।।
आपकें विवाह के खातिर मैं देकर आया ज़ुबान,
निपुणता-कर्मठता से बनाना अब वहाॅं पहचान।
मान-सम्मान करना सभी का रखना स्वयं ध्यान,
मुसीबतों का करकें सामना बनकें रहना चट्टान।।
यह जीवन है ऐसी यात्रा जो स्त्री बिना निराधार,
वंश बढ़ाकर पालन करती भरा है त्याग अपार।
बिटियां अपना साथ था बस इतनें ही समय का,
जुदाई का कहर सहना आप हो गई समझदार।।
मेरी प्यारी लाड़ली ना करना सोच फ़िक्र हमारी,
यहीं दस्तूर है ज़मानें का व मेरी भी ज़िम्मेदारी।
बस कर दूॅं पीलेंं हाथ तुम्हारें और कर दूं विदाई,
दो परिवार को जोड़कर रखतीं समझदार नारी।।
अपनों से बिछुडनें का तुम दुख कभी ना करना,
नूतन नयें रिश्तों में मिश्री जैसें घुल-मिल जाना।
विदाई समारोह के समय तुम ऑंसू नहीं बहाना,
ख़ुश होकर ससुराल जाना सुध-बुध लेते रहना।।
रचनाकार-
गणपत लाल उदय, अजमेर राजस्थान
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