शिखर पर कौन

शिखर पर कौन

ऋचा श्रावणी
नेहरू की गलती की चर्चा चलाते हैं
यह क्यों नहीं सोचते कि देश को
आज़ादी के बाद आगे कैसे बढ़ाते हैं


बलिदानियों ने अपना बलिदान दे दिया
आज़ाद भारत का सपना साकार किया
यह उपहार हमें प्रदान किया
क्या हमनें इन्हें मान दिया


क्या हम अखंड भारत का उद्देश्य रखते हैं
अभी भी टुकड़ों टुकड़ों में बाटने की बात करते हैं
इसी के लिए क्या हम आज़ादी छीने थे
जब विचारों से स्वतन्त्र नहीं रह पाते हैं


अतीत की गलतियों को दोहराते हैं
देश को प्रगतिशील नहीं बनाते हैं
धर्म और जातिवाद पर भ्रष्टाचार फैलाते हैं
जनता के दर्द को समझते नहीं,
बस मूर्ख बनाते हैं


अमीर और धनवान हुआ है
मध्यम वर्ग का सिर्फ नुकसान हुआ है
भुखमरी और बेरोजगारी की आग लगी है
उसे बुझाने कोई सरकार नहीं हुआ है


आज कांग्रेस का पतन हो रहा है
कल बीजेपी का होना है
वंश सबका समाप्त हुआ हैं
शिखर पर सदैव टिका है कौन


मत भूलो राजतंत्र से भी बड़ी
बड़ी होती हैं ताकत प्रजातंत्र की
राजे - रजवाड़े हिल गए
जब जनता ने मशाल लेकर
हो गई इनके सामने खड़ी


अंत पाप का होता हैं
होता हैं अधर्म का विनाश
वक्त रहते सम्भल जाओ
नहीं तो होने वाला है
अब महासंग्राम
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