मोदी के पांच सूत्रों पर अमल

मोदी के पांच सूत्रों पर अमल

(डॉ दिलीप अग्निहोत्री-हिन्दुस्तान फीचर सेवा)

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संकल्पों को साकार करने में योगी आदित्यनाथ यूपी की भूमिका का निर्धारण करते हैं। नरेन्द्र मोदी के पंच प्रण पर भी योगी आदित्यनाथ ने प्रयत्न शुरू कर दिए हैं।नरेन्द्र मोदी ने विकसित भारत के लिए पांच प्रण का महत्त्व रेखांकित किया था। उनका कहना था कि हमको भारतीय विरासत पर गर्व करना चाहिए। वैश्विक समस्याओं का समाधान भारतीय चिंतन के माध्यम से सम्भव है। भारत लोकतंत्र की जननी है। इसका भी देश को गर्व होना चाहिए। दासता के किसी भी निशान को हटाना, विरासत पर गर्व,एकता और अपने कर्तव्यों को पूरा करना सभी का दायित्व है।इससे भारत को विकसित बनाया जा सकता है। पंच प्रण पर अपनी शक्ति, संकल्पों और सामथ्र्य को केंद्रित करना आवश्यक है।

योगी आदित्यनाथ कहते हैं आजादी के शताब्दी वर्ष तक हमारा लक्ष्य भारत को विकसित एवं दुनिया की महाताकत बनाने का होना चाहिए। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हम सभी को विगत स्वाधीनता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिए गए पंच प्रणों से जुड़ना होगा। हमें अपनी विरासत पर गौरव की अनुभूति करनी होगी। विकसित भारत बनाने के लिए अपने अपने कार्य क्षेत्र के कर्तव्यों का ईमानदारी पूर्वक निर्वहन करना होगा। गुलामी के किसी भी अंग को स्वीकार नहीं करना होगा। हर भारतीय के मन में यही भाव होना चाहिए कि अपना देश व धर्म सुरक्षित है। यह प्रसन्नता की बात है कि देश अच्छी दिशा में आगे बढ़ रहा है। अयोध्या में प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर निर्माण के मार्ग प्रशस्त होने से भारत के लोकतंत्र व न्यायपालिका की ताकत वैश्विक मंच पर प्रतिष्ठित हुई है। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का आयोजन हो या फिर प्रयागराज दिव्य एवं भव्य कुंभ। हमारे सांस्कृतिक विजय के इस अभियान का हिस्सा है। यही नहीं अब भारतीय नस्ल के गोवंश संरक्षण की वकालत वैश्विक मंचों से की जा रही है। अति भौतिकता के पीछे पड़कर अर्जित की गई गंभीर बीमारियों से बचने के लिए प्राकृतिक खेती पर दुनिया जोर दे रही है और प्राकृतिक खेती के लिए भारतीय गोवंश ही आधार होगा। इससे गाय भी बचेगी और मानवता को बीमारियों से मुक्ति भी मिलेगी। कुल मिलाकर वैश्विक मंच पर भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी है और हम सभी को इस पर गौरव की अनुभूति करनी चाहिए।

भारत कभी विश्व गुरु था। ब्रिटिश काल तक विश्व व्यापार में अधिकांश हिस्सा भारत का हुआ करता था। प्रचीन भारत में ज्ञान-विज्ञान और शिक्षण संस्थानों के अनगिनत केंद्र थे। दुनिया की सर्वाधिक प्राचीन सभ्यता संस्कृति भारत की है। पिछले आठ वर्षों में देश का नेतृत्व राष्ट्रीय गौरव की इसी भावना के अनुरूप कार्य कर रहा है। वह तत्व पुनर्जीवित हो रहे हैं, जिन्होंने भारत को विश्व गुरु पद पर विभूषित किया था। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत में आज भी विकसित देश बनने की पूरी क्षमता है। देश के वर्तमान नेतृत्व ने इस क्षमता को पहचाना है। इसी प्रक्रिया में ही बाधक तत्वों की पहचान हुई है। सेक्युलर राजनीति के नाम पर देश को आत्म गौरव से विहीन बनाया गया। परिवार आधारित पार्टियों को भी ऐसी ही राजनीति पसन्द थी। लेकिन अब देश में राष्ट्रीय गौरव का संचार हो रहा है। भ्रष्टाचार और परिवार वाद भारत को विकसित बनाने की राह में सबसे बड़े बाधक है। देश के हर संस्थान में परिवारवाद को पोषित किया गया है। विश्वस्तरीय खेल प्रतियोगिताओं में देश के खिलाड़ियों को पहले से अधिक पदक मिल रहे हैं। नरेन्द्र मोदी ने ठीक कहा कि यह प्रतिभाएं पहले भी भारत में थीं, लेकिन भाई भतीजावाद के कारण वह नहीं उभर पायीं। भारत को विकसित बनाने के मार्ग में दूसरी सबसे बड़ी बाधा भ्रष्टाचार है। इसमें भी परिवारवादी पार्टियों पर सर्वाधिक आरोप लगते हैं। नरेन्द्र मोदी ने कहा कि भ्रष्टाचार देश को दीमक की तरह खोखला कर रहा है। उससे देश को लड़ना ही होगा। सरकार का प्रयास है कि जिन्होंने देश को लूटा है। उनको लूट का धन लौटाना पड़े। मोदी सरकार ने व्यवस्था में व्यापक सुधार किया है। चालीस करोड़ जनधन खाते खोले गए। विगत आठ वर्षों में डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के द्वारा आधार, मोबाइल जैसी आधुनिक व्यवस्थाओं का उपयोग करते हुए देश के दो लाख करोड़ रुपये को गलत लोगों के हांथों तक जाने से रोक दिया गया। आत्मनिर्भर अभियान भी भारत को विकसित बनाने में सहायक सिद्ध हो रहा है। इसमें निजी क्षेत्र की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। पीएलआई योजनाओं के माध्यम से, हम दुनिया के विनिर्माण बिजलीघर बन रहे हैं। लोग मेक इन इंडिया के लिए भारत आ रहे हैं।

परमात्मा ने सबसे सुंदर देश भारत बनाया है। भारत में छह ऋतुएं हैं। प्रत्येक संस्कृति के व्यक्ति को अपनी जलवायु के अनुसार जीवन यापन करना चाहिए। आसुरी विद्याएं तोड़ने और दैवीय विद्याएं जोड़ने का काम करती है। सबके सुख की कामना करने से ही विकसित भारत कहलाएगा। तभी भारत विश्वगुरु बनेगा। भारत अपनी विद्याओं के आधार पर विकसित होगा। अनेक सभ्यताएं इस बात का दम्भ भरती हैं कि उन्होंने भारत पर आक्रमण कर और यहां राज कर हमें सभ्य बनाया। सच्चाई यह है कि वे सभ्यताएं जिस समय बर्बर थीं, जीने का रास्ता तलाश रही थीं उस समय भारत भूमि अपनी ज्ञान सम्पदा के दम पर सोने की चिड़िया थी। अतीत में भारत ‘सोने की चिड़िया’ इसलिए नहीं था कि अकूत धन संपदा हमारे पास थी, बल्कि हम ज्ञान का केंद्र थे। भारत इकलौता देश है जो ज्ञान और प्रज्ञा के संवर्धन के लिए जाना जाता है। हम अपने भारत के गौरवशाली इतिहास से अनभिज्ञ हैं। भारत केवल आध्यात्मिक शक्ति के तौर पर ही समृद्ध नहीं रहा, बल्कि अर्थशास्त्र, विज्ञान, सामाजिक व्यवस्था के विषयों में भी यूरोप और अन्य सभ्यताओं से अधिक आगे रहा था। भारत की आर्थिक व्यवस्था बेहद मजबूत थी। विश्व की आबादी का अटठारह प्रतिशत हिस्सा हमारे पास है, धरती का दो प्रतिशत भू-क्षेत्र हमारे पास है और विश्व में सबसे ज्यादा पशुधन हमारे पास है। दुनिया भर में होने वाले मांस की खपत में हम सबसे कम है। वेद-शास्त्रों में कर्तव्यपूर्ति का जितना ज्ञान घर-घर पहुंचेगा उतना ही हमारा समाज सशक्त होगा, एक सशक्त समाज ही मजबूत और विकसित राष्ट्र तैयार करता है। नागरिक के रूप में हमारा कर्तव्य है कि अपने आसपास की समस्या, समाज की समस्या के लिए सरकार और प्रशासन पर ही निर्भर न रहें, बल्कि एकजुट होकर राह की हर चुनौती का सामना करें। जीवन में क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए इसका व्यापक ज्ञान हमारे वेदों में है। वेदों में दिए कर्तव्य बोध के ज्ञान को धर्मशास्त्र कहते हैं। इसलिए वेदों को पढ़ना आवश्यक है। राष्ट्र की संस्कृति का आधार कर्तव्यबोध पर आधारित है। श्रीराम ने वनवास के दिन ही संसार को निसिचरहीन करने का संकल्प लिया था। यह कर्तव्यबोध है। कर्तव्यबोध से परिपूर्ण होना बहुत आवश्यक है। इससे भारत अपने पुराने वैभव पर लौटेगा। हमारा डीएनए एक है। हिन्द, हिन्दू और हिंदुत्व से ही दुनिया में शांति है। तीर्थ, त्योहार और मेले ही एकता और एकात्मता का मार्ग है। हर समूह की पहचान उसके देश से होती है। हमारे देश के पांच नाम है, बाकी के एक ही है। जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान होती है। आक्रमणकारियों ने भी हमारे समाज में फूट डालने के लिए भाषा, जाति और संस्कृति पर चोट की, बावजूद इसके हमारी एकता बरकरार रही। इसमें हमारे त्योहारों का बड़ा योगदान रहा है। इसलिए हमें अपने पर्वों, त्योहारों और संस्कृति को मिटाने के प्रयास करने वालों को रोकना ही होगी। बोली, भाषा, जाति, धर्म, पहनावा भिन्न होने के बावजूद हम एक हैं। यही एकता एकात्मता का सूत्र है। भारत की संस्कृति ही जोड़ने की, एक सूत्र में पिरोने की संस्कृति है।
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