बदल रहा है अपना देश।

बदल रहा है अपना देश।

वर्षों ,सदियों की दुश्चिंताओं के
तम अब श्वेत हो रहे ,
पृथकवाद के दुर्घट नर्तन
सबके हित समवेत हो रहे।
भावी पीढी की रहों से
कांँटे हटे अशेष।


विश्व सकारात्मक आँखों से
देख रहा है भारत को ,
वरदहस्त दे रहे आज हम
मदद आग्रही आरत को।
नहीं चाहते किसी शत्रु को
सहना पड़े कलेश।


अपनी रक्षा के आयुध
निर्माण कर रहे घर में ही ,
निर्भरता अपंनी मुट्ठी मेंं
चढें व्योम के शिर पर भी।
अर्थ व्यवस्था के पैरों में
घूँघरू बँधे विशेष।
ംംംംംംംംംംംംംംംം 
 डा रामकृष्ण/गयाजी
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