संघ के माध्यम से दिया गौरव का संदेश

संघ के माध्यम से दिया गौरव का संदेश

(डॉ दिलीप अग्निहोत्री-हिन्दुस्तान फीचर सेवा)
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना विजय दशमी के दिन हुई थी। इस दिवस का प्रतीकात्मक महत्त्व था। असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक। अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है। संघ संस्थापक ने भी कहा था कि वह कोई नया कार्य नहीं कर रहे हैं। विश्व गुरु और परम वैभवशाली भारत की परम्परा की प्रतिष्ठा कर रहे हैं। भारत में जब तक राष्ट्रीय स्वाभिमान की चेतना रही, तब तक आक्रांता इस तरफ देखने का साहस नहीं करते थे लेकिन राष्ट्रीय एकता और स्वाभिमान कमजोर होने के बाद ही दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों का मनोबल बढ़ा। ऋषि विश्वमित्र प्रभु राम और लक्ष्मण जी को आसुरी शक्तियों के उत्पात दिखाने ले गए थे।बाद में प्रभु राम ने समाज को संगठित करके रावण की सत्ता का अंत किया था।
डॉ हेडगेवार स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। उन्होंने क्रांतिकारी संगठन और कांग्रेस दोनों में सक्रियता से कार्य किया।इसके साथ ही वह विश्वगुरु भारत के पराभव के कारणों पर भी विचार करते थे।उनका निष्कर्ष तथ्य परक था। राष्ट्रीय संगठन और स्वाभिमान का क्षरण ही पराभव का मूल कारण था।समाज को संगठित और राष्ट्रीय स्वाभिमान को जागृत करने के लिए संघ की स्थापना हुई थी। संघ इसी भावना से कार्य कर रहा है। कुछ संगठन होने मात्र से भारत का का दुनिया में प्रभाव और महत्त्व बढ़ गया है।
रूस और यूक्रेन दोनों कह रहे हैं कि भारत के सहयोग से समस्या का समाधान हो सकता है। अमेरिका के सैकड़ों स्थानों पर विजय दशमी और रावण का पुतला दहन समारोह आयोजित किया जा रहा है।देश के भीतर भी अनेक ऐतिहासिक समस्याओं का समाधान हो रहा है। हिंदुत्व के विचार को लेकर चलने वाले कभी साम्प्रदायिक नहीं हो सकते। यह शाश्वत जीवन शैली है। इसमें मानवतावाद,सहिष्णुता, विश्व कल्याण का विचार समाहित है। संविधान की मंशा और हिन्दुत्व के दर्शन में कोई विरोध नहीं है। संविधान की प्रस्तावना में हीं बंधुत्व की भावना का उल्लेख किया गया। यह शब्द हिंदुत्व की भावना के अनुरूप है। इस दर्शन में किसी सम्प्रदाय से अलगाव को मान्यता नहीं दी गई। आजादी के पूर्व कांग्रेस के अधिवेशन में अस्सी फुट लंबे खंबे पर तिरंगा झंडा आधे में ही अटक गया था। उस अधिवेशन की अध्यक्षता जवाहरलाल नेहरू कर रहे थे। तब किशन सिंह राजपूत नाम के एक स्वयंसेवक ने खंबे पर चढ़कर तिरंगे को फहराया था। संघ संपूर्ण समाज को अपना मानकर काम करता है। भाषा,जाति,धर्म, खान-पान में विविधता है। उनका उत्सव मनाने की आवश्यकता है। कुछ लोग विविधता की आड़ में समाज और देश को बांटने की कोशिश में जुटे रहते हैं लेकिन संघ विविधता में भी एकत्व ढूंढने का काम करता है। हमारी संस्कृति का आचरण सद्भाव पर आधारित है। यह हिंदुओं तक सीमित नहीं है, बल्कि भारत में रहने वाले इसाई और मुस्लिम परिवारों के भीतर भी यह भाव साफ देखा जा सकता है। संघ की स्थापना का असली उद्देश्य हिंदू समाज को जोड़ना था। किसी के विरोध में संघ की स्थापना नहीं हुई थी। आज भी संघ इसी विचार पर कायम है।

संघ संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार इस माध्यम से भारतीय गौरव का सन्देश देना चाहते थे। इसमें विदेशी शासन से मुक्ति और देश को परम बैभव पर पहुंचाने का विचार स्वाभाविक रूप से शामिल रहा है। स्वतंत्रता के बाद संघ अपने दूसरे लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए समर्पित भाव से लगा है। विजय दशमी को प्रेरणा और शौर्य का उत्सव माना गया। इस दिन नागपुर में सर संघचालक का संबोधन विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख डॉ मोहन भागवत ने मातृशक्ति की भूमिका को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि भारत आज दुनिया में शक्ति और विश्वास दोनों में बड़ा है। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर पर्वतारोही संतोष यादव उपस्थित रहीं। संघ प्रमुख ने कहा कि वर्तमान समय में मातृशक्ति की उपेक्षा नहीं की जा सकती। हमारी सनातन संस्कृति में महिलाओं को हमेशा सर्वोच्च स्थान दिया गया है लेकिन न जाने क्यों समय के साथ उनकी सक्रियता को कम किया गया। विदेशी आक्रमणों के दौरान जिस मानसिकता को हमने अपनाया था हम आज भी उससे बंधे हुए हैं। विदेशी आक्रमणों के कारण सुरक्षा के नाम पर भारतीय महिलाओं को हमने प्रतिबंधित कर दिया गया। हालांकि आज स्थिति बदल गई है, लेकिन हमारी मानसिकता वही है। हमने महिलाओं को पूजाघर और घरों तक सीमित कर दिया है। उन्हें सार्वजनिक, पारिवारिक मामलों में निर्णय लेने की प्रक्रिया में समान अवसर दिया जाना चाहिए। नारी मुक्ति आंदोलन भी अपना दृष्टिकोण बदलकर उसी दिशा में आगे बढ़ रहा है।

डॉ. भागवत ने उपस्थित लोगों से अपने परिवार से मातृशक्ति जागरुकता पर काम करने की अपील की। यह अवसर है कि हम अपने परिवार की महिलाओं को आगे लाने के कार्य की शुरुआत करें। समूचे समाज की संगठित शक्ति इसके बिना पूरी नहीं हो पाएगी। भारत सहित दुनिया के कई देशों को जनसंख्या असंतुलन का परिणाम भुगतना पड़ा है। सीमावर्ती क्षेत्रों में घुसपैठ तथा अन्य माध्यमों से जनसंख्या असंतुलन पैदा करने का प्रयास किया जाता है। इसलिए जनसंख्या नियंत्रण पर एक व्यापक नीति तैयार की जानी चाहिए और उसे सख्ती से लागू किया जाना चाहिए। इससे किसी को भी छूट नहीं मिलनी चाहिए। जब जनसंख्या बढ़ती है तो बोझ बढ़ता है, लेकिन अगर जनसंख्या को सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए तो वही जनसंख्या ताकत बन जाती है। दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाले देश चीन की सरकार ने अपने देश में परिवार नियोजन को कड़ाई से लागू किया था। आजकल चीन में बूढ़े लोग ज्यादा और युवा कम हैं। अब उसी चीनी सरकार को दो बच्चों के लिए आह्वान करना पड़ रहा है। यदि जनसंख्या घटती है तो समाज और कई भाषाओं के विलुप्त होने का डर भी रहता है। किसी भी आबादी में जाति, धर्म और पंथ के संतुलन की जरूरत होती है। हमने जनसंख्या असंतुलन के दुष्प्रभाव पहले भुगते हैं। जनसंख्या में पंथ और संप्रदायों के असंतुलन के कारण देश टूट गया। घुसपैठ के जरिए भी असंतुलन जैसी चीजें होती हैं। इस संतुलन पर ध्यान देना होगा। हिंदू समाज में अगर कुछ अप्रिय होता है या कोई गलती करता है तो हिंदू समाज स्पष्ट रूप से बोलता है। राजस्थान के उदयपुर और महाराष्ट्र के अमरावती जैसी घटनाओं के बाद मुस्लिम समुदाय के कुछ प्रमुख लोगों ने इसका विरोध किया। ऐसी घटनाओं के बारे में समाज के सभी लोगों को खुलकर बात करनी होगी। अल्पसंख्यक समुदाय के लोग लंबे समय से संघ के संपर्क में हैं और समय-समय पर उनसे संवाद करते रहे हैं। यह कोई हाल की घटना नहीं है। जब माधव सदाशिव गोलवलकर उपाख्य गुरुजी सरसंघचालक थे तब डॉ। जिलानी ने उनसे मुलाकात की थी। मुलाकात और संवाद का यह सिलसीला तब से चल रहा है और भविष्य में भी जारी रहेगा। मुख्य अतिथि पद्म श्री संतोष यादव ने कहा कि अक्सर मेरे व्यवहार और आचरण से लोग मुझसे पूछते थे कि क्या मैं संघी हूं। आज वह प्रारब्ध है कि मैं संघ के इस सर्वोच्च मंच पर आप सबका स्नेह पा रही हूं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और सनातन धर्म दोनों का भाव एकसमान है। संघ का कार्य ईश्वरीय है। सभी को संघ कार्य को देखने,समझने और आगे बढ़ाने की जरूरत है। भारतीय सभ्यता और संघ दोनों एकसमान है।
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