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मुसकाई दीपावली

मुसकाई दीपावली

विजय की ज्योति उधर है जली 
इधर  मुसकाई  दीपावली 

चमती नक्षत्रों की माल
चमकता नील गगन का छोर
चमकते दीपों की नवज्योति
उठाती उर में  दिव्य हिलोर 

सुनहली  रेखा खिचती  कहीं
खिली ज्यों रजत कुसुम की कली 

भयानक काल-रात्रि के स्वप्न
कठिनतम अन्धकार का जाल
हो गया है तम  छिन्न -विछिन्न
क्षितिज में  उगते  हुये प्रवाल 

कि जिनकी सान्ध्य लालिमा मंञ्जु
हृदय को लगती है अति भली 

हमारे अभिनन्दन के भाव
हमारा जग जीवन से त्याग
हमें देता आन्तरिक प्रकाश
लगी है एक लगन की लाग 

राष्ट्र की  वाणी के  अनुकूल 
प्रार्थना  आज  हमारी  फली 

विजय की ज्योति उधर है जली
इधर मुसकाई दीपावली
               •• 
~जयराम जय
'पर्णिका'बी 11/1,कृष्ण विहार, आवास विकास, कल्याणपुर,कानपुर(उ•प्र•)208017
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