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न्यायिक प्रक्रिया के विरुद्ध जन आक्रोस जायज

न्यायिक प्रक्रिया के विरुद्ध जन आक्रोस जायज

न्याययिक प्रक्रिया में परिवर्तन की जरूरत है। संविधान की समीक्षा की जरूरत की आवाज विधि विमर्श और प्रेम यूथ फाउंडेशन उठता रहा है।अब हमारी आवाज को समर्थन मिलने लगी है।हैदराबाद की दिशा के गुनहगारों को जाने अनजाने मे अपराधियों के मौत को लोगो ने सर पर उठा लिया है। दस वर्ष पहले की वहू चर्चित निर्भया कांड की याद ताजा हो गयी जिसे न्याययिक प्रक्रिया द्यारा आज तक न्याय नही मिली। देश में सिर्फ घ्रणित रेप कांड के लाखों केस सड़ियल न्यायिक प्रक्रिया के कारण लम्बित है। रेप से जुड़े मामलों को फास्ट ट्रैक कोर्ट के तहत शीध्र निर्णय की मांग जोड़ो पर है।अब तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी रेप के मामलों को छह माह के अंदर समाधान की आवाज उठाने लगी है, तो कुछ लोग ऐसे मामलों में नया कानून बनाने की वकालत की तो कुछ अधिवक्ताओ का भी मानना है कि कानूनी दाव पेच का इस्तेमाल कर अपराधी बचते रहे है।न्याय प्रक्रिया एनकाउंटर नहीं रह गया है । तत्कालिन घृणित घटनाओ से विचलित होकर बहुसंख्यक आबादी कानूनी प्रक्रिया में बदलाव चाहता है। सिर्फ रेप ही नही किसी भी मामले को सुलझाने में वर्षो लग जा रहे हैं। यह संविधान भारतीय समाजिक परंपरा के भी प्रतिकूल सावित हुआ है। फलतः अपराध, चोरी,घूसखोरी, अन्याय,असमानता रोकने के बजाय बृद्धि हुई है।
1 देश के मंत्री,पदाधिकारी, जन प्रतिनिधि, किरानी, चपरासी तक सभी चोरी, घूसखोरी में आकंठ डूब गए हैं एवं चोरी जन मन मे स्वीकारोक्ति की श्रेणी में है।चोर ही आदरणीय हो गया है क्योंकि भारतीय संविधान उसका कुछ नही बिगाड़ सकता।खूब होगा तो एक दो साल जेल फिर हाथी पर सवार होकर जीत जुलुश करता पाया जाता है।जुलुश में शामिल सभी बड़े नेता चोर ही होते है तो आम जनता चोरी के गुर चखने हेतू लालायित।
2 लोकतांत्रिक देश की 75 प्रतिशत धन मात्र 1 प्रतिशत लोगो के पास है और 99 प्रतिशत के लिए सबसिडी और सवसीडी मे 90 प्रतिशत लूट मात्र 10 प्रतिशत आम जनता को पर संविधान चुप रहने को मजबूर।
3 भारत में लगभग तीन करोड़ मुकदमे वर्षो से लमवित जबकि 80 प्रतिशत मुकदमे झूठे,विरोधी को फंसाने के लिए दाखिल।
झूठे मुकदमे के लिए कोई दंड का प्रवधान सीधा नही । किसी भी मुकदमो का कोई समय सीमा नही ।
हैदराबाद के चर्चित रेप कांड के चारो अभियुक्तों को पुलिस के एनकाउंटर में मार दिये जाने पर देश भर में चर्चा हो रही है। एनकाउंटर को तत्काल न्याय समझने से पूरी न्याय प्रणाली पर देशव्यापी बहस छिड़ गई है। एक ओर लोग इस एनकाउंटर की सराहना कर रहें है तो दूसरी ओर कुछ लोग इसकी आलोचना भी कर रहे है । सोसल मीडिया तो इस विमर्श का केंद्र बन गया है । मुठभेड़ की खबर पूरे देश में आग की तरह फैली और स्थानीय लोग घटना स्थल पर पहुँच गये । अधिकांस लोग पुलिस पर फूल बरसते नजर आये, घटना स्थल पर कुछ महिलाये भी पहुची जो पुलिस को मिठाई खिलाई और तेलंगाना पुलिस जिन्दावाद के नारे लगाए। घटना स्थल पर स्थिति यह हो गई कि पुलिस को लोगो को सम्भालने के बड़ी संख्या में पुलिसकर्मियों को बुलाना पड़ा, हैदराबाद पुलिस के मुताबिक इन अभियुक्तों ने पुलिस जांच के दौरान हमला कर दिया था और जबावी कार्रवाई में चारो मारे गये । यह एनकाउंटर हैदराबाद से 50 किलोमीटर दूर उसी स्थान पर हुआ ,जहाँ दुष्कर्म हुआ था , इस घटना पर बहस की दौड़ चल ही रहा था, तब तक एक और दुखद खबर आयी कि दुष्कर्म के बाद जला दी गई उन्नाव की रेप पीड़िता की दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में मौत हो गई । इस मामले में भी लोगो की मांग होने लगी की अभियुक्तों को हैदराबाद की तरह न्याय प्रदान कर दिया जाए। इसमे कोई शक नही की ऐसा चला तो हमारी पूरी न्याय व्यवस्था के लिए संकट उतपन्न होने का खतरा है लेकिन इस सवाल का जवाब भी देना जरूरी है कि क्या दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध की शिकार बेटियों को तुरंत न्याय मिलने का अधिकार नही है ? दरअसल, लोगो का यह रुख न्याय प्रणाली को लेकर हताश से इपजा है ।
बड़ी संख्या में लोगों का इसके पक्ष में आना सामाजिक व्यबस्था की विफलता का भी संकेत है । इसमें धीमी चाल से चलने वाली अदालते ,जाँच में सुस्ती बरतने बाली पुलिस, कड़े कानून बनाने में विफल रहने बाले हमारे जन प्रतिनिधि और ऐसी घटनाओं को रोकने में विफल समाज , शिक्षा प्रणाली, सभी बराबर के दोषी है । कुछ नेता कहते है कि एनकाउंटर पर लोग जश्न जरूर मना रहे है , लेकिन यह हमारे कानून और विधि व्यबस्था पर सवाल खड़ा करता है । आज जरूरत है कि पूरे देश और समाज को इस बात पर चितन करना होगा कि न्याय प्रणाली को दुरुस्त कैसे किया जाए । राज्य सभा संसद जया बच्चन ने हैदराबाद एनकाउंटर पर कहा कि देर आये दुरुस्त आये , इसके पहले जया बच्चन ने संसद में कही थी कि दुष्कर्म के आरोपियों को जनता के हवाले कर दिया जाए । जानी मानी बैडमिंटन खिलाड़ी सायना नेहवाल ने टिविट की बेहतरीन काम हैदराबाद पुलिस हम आपको सलाम करते हैं।सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश शरद अरविंद वोवरे ने कहा कि न्याय कभी भी आनन फानन में नही किया जाना चाहिए । उन्होंने कहा कि अगर न्याय बदले की भावना से किया जाए तो अपना मूल चरित्र खो देता है । आकड़ो में शायद हमें इस हताश को समझने में मदद मिले राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड व्यूरो के अनुसार 2014 में अदालतों ने दुष्कर्म के 27.4 फीसदी मामलो में ही फैसला सुनाया गया था।2017 में दुष्कर्म के मामलों में फैसला सुनाने की गति मामूली तेज हुई और 31.8 फीसदी तक हो गयी , लेकिन समय से एक और चिंताजनक खबर आ रही है कि अपराधी सबूत मिटाने की गरज से पीड़िता को ही जला दे रहा है । देश मे इस समय 90 प्रतिशत मामले न्यायालय में लमवित है । सवाल यह है कि न्याय के बदले तारीख पर तारीख मिलेगा तो आम जनो में हताश और निराशा स्वभाविक है । आम जनों को कानून के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए । संस्कार युक्त शिक्षा प्रणाली बनाना होगा । न्याय प्रणाली सस्ता, सुलभ और तवरित हो ।
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