महाराष्ट्र में ‘तीर’ तो चल गया

महाराष्ट्र में ‘तीर’ तो चल गया

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान फीचर सेवा)

महाराष्ट्र में शिवसेना के दोनों धड़ों को भारत निर्वाचन आयोग ने तीर चुनाव चिह्न देने से इनकार कर दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को मशाल चुनाव चिह्न मिला जबकि एकनाथ शिंदे की पार्टी को तलवार-ढाल चुनाव चिह्न आवंटित किया गया है। शिंदे गुट ने त्रिशूल मांगा था लेकिन धार्मिक भावना के चलते यह चुनाव चिह्न उसे नहीं मिला। निर्वाचन आयोग से एकनाथ शिंदे की पार्टी बालासाहे बांचा अर्थात् बाला साहेब की पार्टी ने चुनाव आयोग से तीन चुनाव चिह्न मांगे थे। बहरहाल एक मायने में शिंदे गुट की जीत हुई है। चुनाव आयोग ने शिंदे की नई पार्टी के नाम को मंजूरी दे दी जिसके साथ बाला साहेब लगा है इस पर उद्धव ठाकरे की पार्टी के नेता नाराज भी हुए और चुनाव आयोग के फैसले को क्रूर फैसला बताया था। उद्धव ठाकरे की पार्टी का नाम शिवसेना उद्धव बाला साहेब ठाकरे होगा। शिवसेना का चुनाव चिह्न तीर धनुष हुआ करता था।

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले धड़े ‘बालासाहेबंची शिवसेना’ ने अपने पसंद के तीन चुनाव चिन्ह की सूची निर्वाचन आयोग को सौंपी थी। आयोग ने चुनाव चिह्न के लिए शिंदे गुट की पार्टी द्वारा शुरुआत में सौंपी गई सूची को खारिज कर दिया था। गौरतलब है कि निर्वाचन आयोग ने शनिवार को शिवसेना के दोनों खेमों उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले धड़े और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले धड़े को तीन नवंबर को अंधेरी पूर्व विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव में पार्टी के नाम और चुनाव चिह्न का इस्तेमाल करने से प्रतिबंधित कर दिया था। आयोग ने 11 अक्टूबर को उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले शिवसेना के धड़े को ‘मशाल’ चुनाव चिन्ह आवंटित किया था। आयोग ने ठाकरे गुट के लिए पार्टी के नाम के रूप में शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे नाम आवंटित किया था, जबकि एकनाथ शिंदे के गुट को ‘बालासाहेबंची शिवसेना’ बालासाहेब की शिवसेना नाम आवंटित किया गया, लेकिन शिंदे खेमे द्वारा मांगे गए चुनाव चिह्न के रूप में त्रिशूल, गदा और उगते सूरज को खारिज कर दिया था।

ठाकरे धड़े ने भी त्रिशूल एवं उगते सूरज को चुनाव चिह्न के रूप में अपनी पसंद बताया था। उगता सूरज द्रविड़ मुनेत्र कषगम का चिह्न है। शिंदे ने महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नेतृत्व के खिलाफ बगावत करते हुए दावा किया था कि उनके पास शिवसेना के 55 में 40 विधायकों और 18 लोकसभा सदस्यों में से 12 का समर्थन प्राप्त है। उद्धव के इस्तीफे के बाद शिंदे ने भाजपा की मदद से सरकार बनाने हुए मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। इसके बाद पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न का झगड़ा हुआ।

भारत के चुनाव आयोग ने शिवसेना के उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले धड़े को ‘जलती हुई मशाल’ का चुनाव निशान आवंटित करने का फैसला किया। जलती हुई मशाल का चुनाव निशान बाल ठाकरे द्वारा स्थापित शिवसेना पहले भी उपयोग कर चुकी है। 1985 में पार्टी के छगन भुजबल ने जलती हुई मशाल के चुनाव निशान पर चुनाव जीता था। तब पार्टी का कोई चुनाव निशान नहीं था। इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के मुताबिक 1985 में महाराष्ट्र विधानसभा में शिवसेना के एकमात्र विधायक छगन भुजबल मझगांव निर्वाचन क्षेत्र से जलती हुई मशाल के चुनाव निशान पर जीते थे। एक स्थाई चुनाव चिह्न के अभाव में भुजबल और पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर जोशी सहित शिवसेना के दूसरे उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ने के लिए कई चुनाव निशानों का चयन किया था। अन्य चुनाव निशानों में उगता सूरज, बल्ला और गेंद थे। तब चुनाव प्रचार काफी हद तक वॉल पेंटिंग और वॉल राइटिंग से लड़ा जाता था। जलती हुई मशाल को दीवारों पर बनाना बेहद आसान था। भुजबल ने कहा कि तब उनके पास चुनाव लड़ने के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए वे भी वॉल पेंटिंग बनाते थे। जलती हुई मशाल बनाना उनके लिए भी सबसे आसान था। उस समय वे विधानसभा में शिवसेना के अकेले विधायक थे। भुजबल अब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में हैं। जब तक शिवसेना को राजनीतिक पार्टी की मान्यता नहीं मिली थी, तब तक उसने ढाल और तलवार, उगते सूरज, रेलवे इंजन, ताड़ के पेड़ आदि के चुनाव निशानों पर चुनाव लड़ा। पार्टी को 1989 में अपना चुनाव निशान धनुष और तीर मिला था, साथ ही एक राज्य पार्टी के रूप में शिवसेना को मान्यता दी गई थी।

शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट के नेताओं ने कहा कि पार्टी में मौजूदा उथल पुथल का दौर भी गुजर जाएगा। उन्होंने विश्वास भी जताया कि शिवसेना का फीनिक्स ‘अमरपक्षी’ की तरह फिर से उदय होगा। महाराष्ट्र के ठाणे जिले में ठाकरे गुट की ‘महाप्रबोधन यात्रा’ की शुरुआत के मौके पर इस गुट के नेताओं ने यह विचार जाहिर किए। ठाणे मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का गढ़ है, जिन्होंने इस साल जून में बगावत कर ठाकरे की अगुवाई वाली महा विकास आघाड़ी सरकार गिरा दी थी। शिंदे ने भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर सरकार बना ली और 30 जून को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इसके बाद एक सभागार में लोगों को संबोधित करते हुए ठाकरे गुट के विधायक भास्कर जाधव ने कहा कि ठाकरे परिवार के नेतृत्व में शिवसेना ने कई उतार चढ़ाव देखे हैं। उन्होंने कहा-‘यह दौर भी गुजर जाएगा और शिवसेना का अमरपक्षी की तरह फिर से उदय होगा।’ जाधव ने दावा किया कि वह दिन दूर नहीं है जब फडणवीस शिंदे से कुर्सी छीन लेंगे। उन्होंने दावा किया कि हिंदुओं के इतिहास में अपने भाइयों तथा पिता से सत्ता छीनने का कोई उदाहरण नहीं है और यह केवल मुगल शासकों द्वारा किया गया। शिवसेना सांसद विनायक राउत ने कहा कि शिवसेना को खत्म करने की विरोधियों और विश्वासघातियों की कोशिशें कामयाब नहीं होंगी और पार्टी पूरे जोश के साथ एक बार फिर खड़ी होगी।।

शिवसेना की उप नेता सुषमा अंधारे ने दावा किया कि मुख्यमंत्री शिंदे भाजपा के हाथों की महज एक कठपुतली हैं। उन्होंने कहा-‘हमने मन की बात बहुत कर ली। अब जन की बात की जरूरत है इसलिए यह यात्रा शुरू की गई है।’ शिवसेना सांसद राजन विचारे ने कहा कि जनता तक पहुंचने के इस अभियान की शुरुआत उस जगह से की गई है जहां पार्टी का जन्म हुआ था। उन्होंने कहा कि यह यात्रा आने वाले दिनों में नवी मुंबई और राज्य के अन्य हिस्सों से गुजरेगी।

उधर, एकनाथ शिंदे गुट की ओर से अपनी नई पार्टी बालासाहेबांचा शिवसेना यानी बालासाहेब की शिवसेना के लिए तीन चुनाव चिह्नों का प्रस्ताव आयोग को दिया गया था। ये तीन सिंबल थे, ढाल-तलवार, पीपल का पेड़ और सूरज। इससे पहले एकनाथ शिंदे गुट की नई पार्टी के नाम को चुनाव आयोग ने मंजूरी दे दी। एकनाथ शिंदे गुट की पार्टी का नाम बालासाहेबांचा शिवसेना यानी बालासाहेब की शिवसेना होगा। इसके अलावा उद्धव ठाकरे की पार्टी का नाम शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) होगा। उद्धव ठाकरे गुट को आयोग ने मशाल का चुनाव चिह्न भी आवंटित कर दिया है। शिंदे गुट का कहना है कि वही बाला साहेब ठाकरे की बिरासत को आगे बढ़ा रहे हैं और असली शिवसेना है।
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