तपती रेत नदी की : मेरी दृष्टि में

तपती रेत नदी की : मेरी दृष्टि में

डाॅ• रामकृष्ण की काव्य रचना तपती रेत नदी की मानव जीवन की इयत्ता और उसकी मनोवैज्ञानिकता की एक शाश्वत अभिव्यक्ति है।काव्यमर्मज्ञ डाॅ• रामकृष्ण की कविताएँ इस दृष्टि से विशेष उल्लेखनीय हैं कि वे कवि के वास्तविक अनुभव के ताप से पैदा हुई हैं।कवि रामकृष्ण इस कविता-संग्रह में अकारण नहीं कहते-
और कितने प्राणघातक विषभरे आघात झेलें।
ओ! नियंता विश्वपालक कहो तो संन्यास ले लें।।
यह कवि की पलायनवृत्ति नहीं है, अपितु अपने भीतर काव्य-रचना की वह छटपटाहट है, जो दसियों काव्य के प्रकाशन के बाद भी अभिव्यक्त नहीं हो पाई है।रवीन्द्रनाथ ठाकुर गीतांजलि में कहते हैं-
यहाँ जो गाने आया था कहाँ मैं गा पाया वह गान!
आज भी सुर ही साध रहा, लगाए बैठा उसका ध्यान।
हेथा जे गान गाइते आमार हय नि से गान गावा-
आजो केवल सुर साधा, आमार केवल गाइते चावा।
(गीतांजलि-13)
कवि और कविता का अपने समय के सभी सरोकारों से गहरा संबंध होता है।कवि की दृष्टि अत्यंत सूक्ष्म होती है।वह प्रकृति और संसृति को अंतर्दृष्टि से निहारता है और अपनी काव्य-सामर्थ्य से उसे अभिव्यक्ति प्रदान कर नये स्वरूप में ढालता है।यहाँ भी कवि रामकृष्ण कहते हैं-
उमस है संदर्भ भी संगीन है
दूर का परिदृश्य भी रंगीन है।
कामनाओं की पहाड़ी से उतर
बर्फ होती दृष्टि से बाहर चलें।।
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इस कुहासे से निकल थोड़ा चलें।।
तपती रेत नदी की कविता-संग्रह के शीर्षक की अपनी एक अलग सार्थकता और प्रासंगिकता है।कवि की दृष्टि नदी और सागर को एक साथ स्पर्श करती है।दोनों की आत्मिक अनुभूति को अभिव्यक्त करते हुए कवि कहता है-
तपती रेत नदी की भूखी
प्यासी लगती है।
और सागरों की लहरें
ऐयाशी लगती हैं।
इन पंक्तियों की अभितप्त व्यंजना को समझे बिना इस कविता-संग्रह की अंतश्चेतना को जानना और पहचानना अत्यंत कठिन है।सहृदय पाठक के अंतस्तल में ऐसी पंक्तियों से उत्पन्न प्रकृतिक संवेदन ही अभितप्त व्यंजना है।
अपने जीवन के आठ दशकों के बाद भी काव्याचार्य डाॅ• रामकृष्ण की काव्य-साधना की निरंतरता आज की युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणास्पद है।संस्कृत, हिंदी और मगही की काव्याधारा के त्रिवेणी-संगम पर अवस्थित इनकी काव्यचेतना सहज भाव में प्रस्फुटित होती रहती है और इनकी संस्कृत की देव-वंदना मुझ जैसे पाठक के मनप्राण को ब्रह्ममुहूर्त में ही आनंदित कर जाती है।कब कौन सा छंद फेसबुक और ह्वाट्सप पर आकर मन को गुदगुदाने लगे-पता नहीं।मुझे आत्मविश्वास है कि इस कविता-संग्रह की काव्यशक्ति से पाठक प्रमुदित और प्रभावित होंगे।इति शुभम्।राधानंद सिंह
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