राष्ट्रवाद के प्रतीक पंडित श्रीनाथ मिश्र जिन्हें संघ के स्वयंसेवक कहलाने का था गर्व :- डॉ राकेश दत्त मिश्र

राष्ट्रवाद के प्रतीक पंडित श्रीनाथ मिश्र जिन्हें संघ के स्वयंसेवक कहलाने का था गर्व :- डॉ राकेश दत्त मिश्र

बिहार के भभुआ जिले के इसरी ग्राम निवासी शिक्षक सह समाजिक कार्यकर्ता, सूर्य पूजा परिषद के संस्थापक सदस्य एवं दिव्य रश्मि पत्रिका के मार्गदर्शक पंडित श्रीनाथ मिश्र जी आज हम सब को छोड़ गोलोकवासी बन गये .०३ जनवरी १९४५ से १६.०८.२०२२ को भभुआ जिले के इसरी ग्राम में उनका जन्म हुआ था | अपने प्रारम्भिक दिनों से ही संघ से जुड़ें रहें श्रीनाथ मिश्र जी अक्सर मुझे दिनकर जी की पंक्तिया सुनाया करते थे वे कहते थे

जला अस्थियाँ बारी-बारी

छिटकाई जिनने चिंगारी,

जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर लिए बिना गर्दन का मोल

कलम, आज उनकी जय बोल ।

जो अगणित लघु दीप हमारे

तूफानों में एक किनारे,

जल-जलाकर बुझ गए,किसी दिन माँगा नहीं स्नेह मुँह खोल.....

कलम, आज उनकी जय बोल ।

~ राष्ट्रकवि श्री दिनकर जी

वो हमेशा आगे बढने की प्रेरणा देते रहते थे | मुझे याद है २०१४ का चुनावी माहौल जब मै उनके पास गया और उन्हें बताया कि मै पटना साहिब से चुनाव लड़ रहा हूँ तो उन्हों ने तुरंत अपने पैकेट से ११०० रु मुझे आशीर्वाद स्वरूप दिया और कहाकि भारत माँ के लिए जो कार्य तुमने प्रारम्भ किया उसे रुकने मत देना | अपने संघर्ष के दिनों की चर्चा करते और आपातकाल का जिक्र करते हुए उन्हों ने बताया था कि आपातकाल काल के वक्त मै डालमियानगर में शिक्षक के रूप में कार्यरत था और प्रत्येक सुबह संघ की शाखा भी लगाया करता था इसी साखा लगाने के कारण उनके ऊपर शिक्षक संघ और कांग्रेस कमेटी द्वारा उनके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए कई बार आवेदन दिया गया था, जिसकी प्रति प्रधानमंत्री तक को भेजी गई थी। आवेदन में ऐसी भाषा का प्रयोग किया गया था जैसे साखा लगाना कितना बड़ा अपराध हो गया ! इसके बाद 74 आंदोलन के दौरान वे कई बार जेल की यात्रा भी कर चुकें । परन्तु उनका दृढ विश्वास चरैवेती-चरैवेती का रहा है इसी संकल्प के और इनके जैसे संघ के निष्ठावान कार्यकर्ताओं की निष्ठा का परिणाम है कि आज देश में एक ऐसी सरकार है जो राष्ट्र हित के कार्यों को प्राथमिकता देते हुए कार्य कर रही है। आज वह समय आ गया है जबकि हमारे देश के उप-राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री जैसे गणमान्य जन गर्व से कहते हैं - "हाँ, मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वयंसेवक हूँ"। संघ कार्य ईश्वरीय कार्य है। संघ व्यक्ति निर्माण के काम को करने में लगा है। परंतु, इस यात्रा में लाखों ने अपना जीवन खपा दिया है, बहुतों के तो अब नाम लेने वाला अब कोई नहीं। उन सभी वरिष्ठ और बलिदानी कार्यकर्ताओं को मै हृदय से नमन करता हूँ ।

ऐसी अनगिनत यादें उनके साथ जुडी रही , जब मैंने दिव्य रश्मि का प्रकाशन प्रारम्भ किया तो सबसे पहले सदस्य के रूप में हमारे श्रीनाथ चाचा सामने आये आज भी मै दो महान विभूतियों को याद करने से नहीं चुकता एक पंडित श्रीरंजन सूरिदेव और श्रीनाथ मिश्र थे जिन्हों ने कदम कदम पर मेरा मार्गदर्शन किया | वे स्वयंसेवको अक्सर कहतें थे

मुझे तोड़ लेना वनमाली!

उस पथ पर देना तुम फेंक,

मातृभूमि पर शीश चढ़ाने

जिस पथ जावें वीर अनेक 
पिछले वर्ष जब हमारे पिताजी और पंडित श्रीनाथ मिश्र जी के अभिन्न मित्र पंडित सुरेश दत्त मिश्र के श्राद्ध कर्म में आये थे तो उन्हों ने उनके साथ की कई यादें साझा की और आज एक वर्ष भी नहीं पूर्ण हुआ वे भी हमें छोड़ कर चलें गये |
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