रोटी के लाले पड़े, कहाँ गये रणछोड़ ?

 

रोटी के लाले पड़े, कहाँ  गये  रणछोड़ ?

चीर हरण नित हो रहे, द्रोपदियॅा लाचार।
दुस्शासन मदमस्त हैं,बढ़ा खूब ब्यभिचार।। 

नाम धर्म  का ले यहाँ, मची  हुई  है  लूट।
जाति-धर्म के नाम पे,डाल  रहे हैं   फूट।। 

दिन दूना  बढ़ने  लगा,देखो  यहाँ अधर्म । 
बहुत दिनों से यहाँ पर,दिखें नहीं शुभ कर्म।। 

तुम भी नटवरलाल हो,वे  भी नटवरलाल।
झूठों ने इस दौर का,हाल किया बेहाल।। 

धुप्प अंधेरा हर तरफ,साफ न  कोई कोण।
रोटी के लाले  पड़े ,कहाँ  गये रणछोण।। 

मॅहगाई चाटे  जड़े, गाल  हो गये  लाल। 
समाधान के नाम पर,सिर्फ  बजाते गाल ।। 

कंस पूतना का किया ,था तुमने  उद्धार। 
इसयुग के जो कंस हैं,उनसे  कैसा प्यार।। 

कन्हा अब तो आइये,हुये  सभी हैरान।
पानी सर पर चढ़ गया,कुछ तो करें  निदान।। 

ढोंगी भक्तों ने रचे ,कान्हा  यहां   कुचक्र।
आकर अब  इनपे करो,दृष्टि जरा  सी बक्र।। 
                           *
~जयराम जय
पर्णिका,बी-11/1,कृष्ण विहार आ वि
कल्याणपुर कानपुर -208017(उ प्र)
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