राष्ट्र कवि मैथिलीशरण जी गुप्त

राष्ट्र कवि मैथिलीशरण जी गुप्त 

राष्ट्र कवि श्रद्धेय श्री मैथिली शरण जी गुप्त की जन्म जयंती पर कोटि - कोटि नमन वंदन श्रद्धा सुमन समर्पित 

हिंदी साहित्य के कमल नयन का,हम अभिनंदन करते हैं 

सूर्य वंश के प्रखर रश्मि रथी का, हम नमन नमन करते हैं 

गहोई समाज के विभूति श्रेष्ठ का, शत् शत् वंदन करते हैं 

दद्दा श्री के चरणों में अर्पित, श्रद्धा शब्द सुमन करते हैं 

प्रचंड अरुण की प्रखर किरणें, बिखर रहीं थीं जल थल में

राष्ट्र कवि ! खेल रहा था, रामचरन - काशीबाई के आंगन में

पुलक प्रकट हो रहीं थीं खुशियां, चिरगांव की पावन धरती पर 

गहोई शिरोमणि की नव नूतन किरणें, फैल रहीं थीं भारत भू पर 

काल उन्हें क्या मार सका, मृत्यु को था जिसने दुत्कार दिया

जिसने हिंदी साहित्य गगन को, प्रखर अरुण का दान दिया

अनुपम ग्रंथों को रच कर समाज , राष्ट्र को गौरव गान दिया

गहोई समाज सदैव ऋणी रहेगा,जग में जिसको यश गान दिया

मान दिया सम्मान दिया, पहचान का गर्वित अभिमान दिया

जगत के साहित्य कोष में, अद्वितीय ग्रंथों का भंडार दिया

यशोधरा, पंचवटी, कर्बला, उर्मिला, जाने कितनों का श्रंगार किया 

ऐसे विभूति विभूषण पद्म भूषण दद्दा जी को, हम नमन नमन करते हैं

बुंदेलखंड के चिरगांव धाम की पुण्य धरा को,हम नमन नमन करते हैं

        जय गहोई,जय भारत

         चंद्रप्रकाश गुप्त "चंद्र"
    (ओज कवि एवं राष्ट्रवादी चिंतक)
         अहमदाबाद, गुजरात

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