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अपनी अपनी सोच

अपनी अपनी सोच

तेरे मेरे दिलके रिश्ते
सच में बहुत गैहरे है। 
इसलिए हर धड़कन में
तुम जो बसते हो। 
देख न ले जब तक
तेरी सूरत को हम। 
तब तक दिन अधूरा 
अधूरा सा लगता है।। 

मिले हो जिस तरह से
तुम इस जीवन में। 
अंधेरो में भी उजाला
तुम कर दिये हो। 
और बदलकर रख दिये हो
चाहत के अंदाज को। 
की दूर रहकर भी तुम
मोहब्बत कर सकते हो।। 

बाग बगीचों में तुमने
बहुत कुछ देखा होगा। 
स्नेह प्यार से भरे हुए
पक्षियों का मिलन देखा होगा। 
फिर कल्पनाओं के सागर में
खुदको डूबो दिये होंगे। 
और अजब सी हलचल को
दिलमें मेहसूस करने लगे होंगे।। 

देखते देखते सोचते सोचते
उम्र के इस पड़ाह पर आ गये। 
न वो बदले न हम बदले 
बस बदला तो ये जमाना। 
जिसमें मोहब्बत करने के
नये नये तरीके आ गये। 
जो न प्यार मोहब्बत को समझता है
पर अपनी हवस को ही देखता है।। 

जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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