पटना हाई कोर्ट के निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देंगे सीए.संजय झा।
विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों की जाँच के लिए उच्च न्यायलय, पटना के CWJC 7808/22 दिनांकः 14/07/22 के सुनवाई के आलोक में दिनांकः 04/08/22 को न्यायादेष वेबसाइट पर अपलोड किया। जिसकी प्रतिलिपि निकालने पर ज्ञात हुआ कि इसके पहले भी PIL याचिकाकत्र्ता द्वारा CWJC No 10636/2021 में उसी मुद्दे को लेकर दोबारा च्प्स् याचिकाकत्र्ता द्वारा दायर की गई, जबकि गत दिनांकः 10/08/21 के पारित आदेष में याचिकाकत्र्ता को स्वतंत्र रूप से छूट दी गई थी कि वे विस्तृत प्रतिवेदन शिकायत निवारण हेतु सक्षम पदाधिकारी के समक्ष पेष करने की छूट दी थी और उक्त आदेष के आलोक में याचिकाकत्र्ता द्वारा गत दिनांकः 25/08/21 को कुलपतियों को विस्तृत प्रतिवेदन दी गई थी, परंतु याचिकाकत्र्ता के प्रतिवेदन पर तीन महीने की अवधि के अंदर निष्पादन करना था। लेकिन समक्ष पदाधिकारी द्वारा किसी भी प्रकार का औपचारिक निर्णय नहीं लिया गया। अतः दूसरा याचिका दायर करने का कोई औचित्य उक्त वर्णित मुद्दे पर दायर करना वैध नहीं कहा जा सकता। इसलिए याचिका खारिज किया जाता है। फिर भी याचिकाकर्ता को इस बाबत छूट दी जाती है कि वो उक्त पारित आदेष पर अनुपालन नहीं होने पर याचिकाकर्ता उचित कार्यवाई कर सकते है और यह याचिका को निष्पादित किया जाता है।
ज्ञातव्य है कि गत दिनांकः 14/07/22 के बहस दौरान याचिकाकत्र्ता के विद्वान अधिवक्ता श्री दयाषंकर प्रसाद जब वे अपना पक्ष रखने के लिए न्यायालय में रखने लगे कि याचिकाकत्र्ता को दोबारा याचिका दायर करने की छूट दी गई थी कि अगर उनका षिकायत पर सक्षम पदाधिकारी द्वारा कोई निर्णय 3 माह के अंदर नहीं लेने पर वे दोबारा अपनी याचिका दायर करने की छूट दी गई थी, चूंकि मुद्दा भ्रष्टाचार का उठाया गया था और उक्त C & AG, UGC का निष्पादन मेरिट के ऊपर नही किया गया था। इसी बीच सरकारी विद्वान अधिवक्ता ने अपना पक्ष रखते हुए, न्यायालय को बताया कि याचिकाकत्र्ता ने उसी मुद्दे को लेकर दोबारा याचिका दायर किया अतः यह अस्वीकृत करने योग्य है। इसपर याचिकाकत्र्ता के विद्वान अधिवक्ता अपना पक्ष रखने के लिए निवेदन करने लगे परंतु न्यायमूत्र्ति एस॰ कुमार उनको हिदायत करते हुए, 5 लाख रूपया जुर्माना को कहा और इसी बीच दूसरा शुरू कर दिया। फिर भी याचिकाकत्र्ता के अधिवक्ता न्यायालय को अवगत कराते रहे कि हमारे पक्ष रखने एवं पूर्ण सुनवाई नही की जा रही है। इसपर मुख्य न्यायाधीष न्यायमूत्र्ति संजय करोल ने याचिकाकर्ता के अधिवक्ता को सलाह दिया कि दूसरे केस की सुनवाई की जा रही है। अतः अधिवक्ता बाहर निकल गए।
उपरोक्त संदर्भ में सीए. संजय कुमार झा ने बताया कि बिहार के विष्वविद्यालय एवं महाविद्यालय बिहार विष्वविद्यालय अधिनियम 1976 के साथ साथ बिना C & AG, UGC एवं राज्य सरकार के विविध गाइडलाइन के अनुरूप कार्य नहीं कर रहे हैं। विष्वविद्यालयों में अरबों/खरबों का घोटाला है जो आए दिन समाचार पत्रों के माध्यम से सामने आती रहती है। बिहार के विष्वविद्यालयों के आंतरिक नियंत्रण, अंकेक्षण एवं विधिक अनुपालन नही कर रहे हैं। सीएजी ने इस संबंध में टिप्पणी दर्ज की है कि बिहार के विष्वविद्यालय 40-45 सालों से अंकेक्षण के लिए दस्तावेज नही उपलब्ध करा रहे।
अतः प्रथम दृष्टया कारण के बावजूद कोर्ट का अपने कार्यपद्धति से अवरोधित करना दुखद है। सीए. झा ने पटना हाई कोर्ट के निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देने की बात कही।
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