आम से ख़ास

आम से ख़ास

अक्सर
किसी आम का
ख़ास बन जाना
बढ़ा जाता है दूरियाँ।

खुलकर मिलना
हंसकर मिलना
राह में चलते
बातें करना
सब
कहीं खो जाता है।

अक्सर
किसी आम का
ख़ास बन जाना
बढ़ा जाता है दूरियाँ।

वो बेतकल्लुफी की बातें
झलकता था अपनापन
सिमट जाता था दायरा
कहने सुनने का
मिट जाता था खारापन।

अक्सर
किसी आम का
ख़ास बन जाना
बढ़ा जाता है दूरियाँ।

रिश्तों के दरम्यां
जमने लगती है बर्फ
अनचाहे और अन्जाने ही
उगने लगती है
नागफनी की झाड़ियाँ
जब आदमी
आदमी नहीं रह जाता
बस 
आम से खास बन जाता।
उसका अपनापन
उलझ जाता है
नागफनी में।

अक्सर
किसी आम का
ख़ास बन जाना
व्यवहार में
बढ़ा जाता है दूरियाँ।

डॉ अ कीर्तिवर्धन
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