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शिंजो के नाना के नाम से चीनी थर्राते थे

शिंजो के नाना के नाम से चीनी थर्राते थे

टोक्यो। जापान के पूर्व पीएम शिंजो आबे अब इस दुनिया में नहीं रहें। नारा शहर में 8 जुलाई को भाषण देने के दौरान हमलावर ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी। शिंजो आबे जापान के लंबे समय तक प्रधानमंत्री पद पर रहे। वह 4 बार जापान के प्रधानमंत्री रहे। शिंजो आबे के पिता शिनतारो आबे वल्र्डवार-2 में सुसाइड अटैकर बनने के लिए नेवल एविएशन स्कूल में दाखिला लिए थे। तब तक जापान ने विश्व युद्ध में सरेंडर कर दिया था। उसके बाद शिनतारो आबे को वह मौका नहीं मिल पाया। उसके बाद शिनतारो आबे एक पॉलिटिकल रिपोर्टर बन गए। जब पत्रकारिता से मन भर गया तो वह राजनेता बनें। बाद में उन्होंने 1982 से 1986 तक जापान के विदेश मंत्री के तौर पर काम किया। बता दें कि वर्ल्ड वॉर-2 में जापानी सेना ने युद्ध करने के लिए एक रणनीति बनाई थी। दरअसल जापान के पायलट दुश्मनों के ठिकानों को निशाना बनाते हुए खुद के प्लेन को क्रैश कर देते थे और शहीद हो जाते थे।शिंजो आबे के नाना नोबुसुके किशी से चीनी इतना डरते थे कि उनके मौत के बाद वे उन्हें शैतान बुलाने लगे। चीनी लेखक वांग क्विजियांग ने लिखा है- उनके अपराधों का ढेर स्वर्ग तक लगा है, वह सच में शैतान हैं। शिंजो आबे के नाना का नाम चीनियों पर अत्याचार के लिए लिया जाता है। 1931 में नोबुसुके किशी ने चीन के मंचूरिया पर कब्जा पाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई। बाद में उन्हें इसका ईनाम भी मिला। चीनी इतिहासकारों का मानना है कि किशी चीनियों से वेश्यावृत्ति करवाते थे। उन्हें बिना अपराध के फांसी पर लटका देते थे और उन पर केमिकल एक्सपेरिमेंट्स भी करते थे। जापान की डेवलपमेंट के लिए वह चीनियों से खूब मेहनत करवाते थे और उन्हें गुलाम की तरह रखते थे। कहा जाता है कि शिंजो आबे के नाना चीन के लोगों से फुशन कोल माइन में काम करवाते थे। उस माइन में 40 हजार लोग काम करते थे लेकिन हर साल उनमें से 25 हजार लोगों को रिप्लेस कर दिया जाता था क्यों कि वहां जो लोग काम करते थे उनमें से बस कुछ लोग ही जिंदा बचते थे। किशी चीनी लोगों के प्रति इस कदर निर्दयी थे कि उन्हें रोबोट गुलाम कहते थे।शिंजो आबे के नाना को 1939 में तत्कालीन सरकार ने जापान बुलाकर 1940 में मंत्री बना दिया। उस वक्त जापान के प्रधानमंत्री फुमिमारो कोने थे। 1942 में नोबुसुके किशी को निचले सदन का नेता चुना गया। 1945 में किशी को दूसरे वल्र्ड वॉर के बाद 3 साल के लिए जेल भेज दिया गया। 1948 में वह रिहा होकर वापस लौटे और 1955 में उन्होंने लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी की स्थापना की। 1957 से 1960 तक जापान के प्रधानमंत्री रहें। 7 अगस्त 1987 को उनकी मौत हो गई।शिंजो आबे के दादा कान आबे एक जमींदार थे। कान आबे का जन्म जापान के यामागुची प्रांत के एक प्रभावशाली जमींदार परिवार में 1894 में हुआ था। बाद में वह राजनीति से भी जुड़ गए। 51 साल की उम्र में 30 जनवरी 1946 को उनका निधन हो गया।

चीन-जापान संबंधों को आबे ने सुधारा-शी जिनपिंग बीजिंग दुनिया के अधिकांश देशों में जापानी नेता की हत्या की खबर से शोक की लहर दौड़ गई, वहीं चीनी सोशल मीडिया वेबसाइट ‘वीबो’ पर जश्न का माहौल देखने को मिला। वीबो पर लोग ‘शैंपेन सेलिब्रेशन’ तक की बातें कहते देखे गए। हालांकि चीन की सरकार ने इस घटना पर दुख जताया और कहा कि आबे के निधन से चीन सदमे में है क्योंकि उन्होंने चीन-जापान संबंधों को सुधारने में अहम योगदान दिया था। आबे के निधन से चीन सदमे में है’। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान के हवाले से कहा गया कि आबे के निधन से ‘चीन सदमे में है।’ लिजियान ने कहा कि आबे ने ‘चीन-जापान संबंधों के सुधार और विकास को बढ़ावा देने में अहम योगदान दिया।’
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