नीतीश की अलग दिखने की सियासत

नीतीश की अलग दिखने की सियासत

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के घटक दलों में जेडीयू सबसे बड़ा है और बिहार जैसे राज्य में मुख्यमंत्री की कुर्सी भी संभाले हुए है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो राजग का सबसे बडा छत्रप भी है। इतिहास गवाह है कि इस तरह के छत्रप खतरनाक भी होते हैं। भाजपा इसीलिए सावधान रहती है। मुख्यमंत्री भले ही जेडीयू से हैं लेकिन विधायक भाजपा के ज्यादा हैं। भाजपा ने बिहार में विधायकों की संख्या बढाने के लिए पिछले दिनों ही एक योजना बनाई है। नीतीश कुमार और जदयू दोनों के लिए यह खतरे की घंटी मानी जा रही है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के शपथ ग्रहण समारोह में नीतीश का शामिल न होना भी इसी से जोडकर देखा जा रहा है। सीएम नीतीश कुमार के राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं होने पर हो रही राजनीति पर जेडीयू ने सफाई दी है। उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि नीतीश कुमार हर कार्यक्रम में शामिल हों, यह जरूरी नहीं है। नीतीश कुमार का अपना कार्यक्रम है वो उसमें व्यस्त हैं। नीतीश कुमार के नहीं शामिल होने का कोई अर्थ नहीं निकाला जाए। उन्होंने कहा कि जब द्रौपदी मुर्मू देश की राष्ट्रपति बन चुकी हैं और सीएम नीतीश कुमार ने उन्हें समर्थन देकर राष्ट्रपति बनने पर बधाई दे दी है तो उनके शपथ ग्रहण समारोह में शामिल न होने पर बेवजह सियासत हो रही है। वहीं, जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह ने कहा कि उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए पार्टी के सांसदों को निर्देश दिया था कि वो राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हों। दरअसल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं होने पर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं जिनमें एक वजह हाल के दिनों में बिहार बीजेपी के अध्यक्ष संजय जायसवाल के उस बयान को भी माना जा रहा है जिसमें उन्होंने कहा था कि बिहार में बड़ी संख्या में आतंकियों का स्लीपर सेल काम कर रहा है और हर जिले में टेरर मॉड्यूल मौजूद है। इसको लेकर उपेंद्र कुशवाहा ने संजय जायसवाल पर हमला बोला। कुशवाहा ने कहा कि संजय जायसवाल जिस तरह से बोल रहे हैं उन्हें बयान देने की जगह वो जानकारी शेयर करनी चाहिए। सिर्फ बोलने से क्या फायदा है। उनके बयान का कोई मतलब नहीं है, वो जो भी बयान दे रहे है वो राजनीतिक बयान है। कुछ ऐसी बात है जो वो छिपा रहे हैं।

इस तरह बिहार में भाजपा और जदयू के बीच तनातनी चलती ही रहती है। लगभग एक साल पहले की बात है ।प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के प्रचार के लिए भाजपा ने अपने झोला बांटने का अभियान शुरू किया था। प्रदेश कार्यालय में नित्यानंद राय ने इसका शुभारंभ किया। प्रदेश कार्यालय से शुरू हुए इस अभियान के पहले चरण में पार्टी के विधायकों और सांसदों ने पूरे प्रदेश में 50 लाख झोला बांटे। पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत हर महीने पांच किलो मुफ्त अनाज देने की योजना केन्द्र सरकार चला रही है। इसी सिलसिले में ये झोला बांटे गये थे। बिहार में 50 लाख मोदी छापवाले झोले 49 हजार 780 जनवितरण दुकानों पर पहुंचाए गये थे। भाजपा के कार्यकर्ता बूथ लेवल तक कार्यक्रम आयोजित कर झोला वितरित कर रहे थे। झोला पर पीएम मोदी की तस्वीर, भाजपा का कमल निशान, पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना छपा है। पीएम के साथ ही क्षेत्रवार सांसद व विधायक की तस्वीर भी इस पर छपी थी। भाजपा के कार्यकर्ता पीडीएस दुकानों में पहुंच कर भी लाभुकों को यह झोला वितरित कर रहे थे। भाजपा के इस अभियान में पीडीएस दुकानों पर खास जोर दिया गया। सांसद और विधायकों ने झोला के साथ ही गरीब कल्याण अन्न योजना का फ्लैक्स भी बनवाया। प्रत्येक सांसद को 1 लाख झोला, 1 हजार फ्लैक्स तो विधायक को 20 हजार झोला, 200 फ्लैक्स बनवाने के लिए कहा गया था। पीएम की तस्वीर और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना से जुड़े इस फ्लैक्स को तैयार कराने के बाद सभी पीडीएस दुकानों के बाहर लगाया गया। बिहार में 49 हजार 780 जनवितरण दुकानें हैं। इस तरह के प्रचार का असल मकसद गरीबों तक मोदी सरकार के काम को पहुंचाना है। प्रधानमंत्री अन्न योजना के तहत कोरोना काल में केंद्र सरकार ने 5 किलो अनाज और 1 किलो दाल नबंबर तक मुफ्त देने का ऐलान किया। भाजपा के इस झोला अभियान का असल मकसद, आमलोगों तक ये बात पहुंचाना है कि गरीबों को जो अनाज मिल रहा है वो असल में मोदी सरकार का दिया है। यही वजह है कि भाजपा शासित यूपी जैसे राज्यों में इस प्रचार अभियान के फ्लैक्स पर पीएम के साथ ही सीएम योगी की भी तस्वीर लगायी गयी लेकिन नीतीश कुमार की तस्वीरों को इससे अलग रखा गया। यहां संसदीय क्षेत्रों के लिहाज से भाजपा के सांसदों का चेहरा होगा और जहां विधायक हैं वहां विधायक का। कुल मिलाकर केन्द्र सरकार के काम का क्रेडिट नीतीश कुमार न ले पाएं, इसकी पूरी कोशिश की गई। इसलिए नीतीश कुमार भी अपनी एक अलग पहचान रखना चाहते हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के शपथ ग्रहण समारोह में नीतीश का शामिल न होना भी इसी की एक कडी हो सकती है।

जनता दल युनाइटेड (जेडीयू) के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा ने स्पष्ट रूप से सहयोगी बीजेपी को इस धारणा के लिए जिम्मेदार ठहराया कि बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में सब कुछ ठीक नहीं है। उन्होंने बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल के इस दावे को लेकर उनकी आलोचना की कि बिहार तेजी से राष्ट्र विरोधी आतंकवादी गतिविधियों का केंद्र बनता जा रहा है। उन्होंने कहा कि दोनों पार्टियों (बीजेपी और जेडीयू) के बीच कोई बड़ा मुद्दा नहीं है लेकिन बीजेपी नेताओं के बयान अक्सर गलत धारणा को जन्म देते हैं। जेडीयू-बीजेपी संबंधों के बारे में पत्रकारों के सवालों के जवाब में उपेन्द्र कुशवाहा ने कहा कि सहयोगी दल के नेताओं को अनर्गल बयान देने से बचना चाहिए।

फुलवारी शरीफ में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) टेरर मॉड्यूल के खुलासे के संदर्भ में संजय जायसवाल के द्वारा पिछले हफ्ते की गई टिप्पणियों के बारे में पूछने पर जेडीयू के नेता ने तंज भरे लहजे में कहा कि वो जिस तरह से बोलते हैं, ऐसा लगता है कि उन्हें तथ्यों के बारे में प्रशासन से अधिक मालूम है। यदि ऐसा है तो उन्हें यह अधिकारियों के साथ साझा करना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि उन पर संवेदनशील जानकारी छिपाने का आरोप लग जाए। कुशवाहा ने कहा कि हमें बहुत स्पष्ट होना चाहिए कि मॉड्यूल का पर्दाफाश किसी बड़े साजिश का कारण नहीं है। पूर्व में कई अन्य राज्यों में इस तरह के टेरर मॉड्यूल का खुलासा हुआ है। केंद्रीय मंत्री अमित शाह और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी नड्डा के इस सप्ताह के अंत में बिहार दौरे के बारे में पूछे जाने पर जेडीयू के नेता ने कहा कि इससे हमें कोई सरोकार नहीं है। वो अपनी पार्टी के एक कार्यक्रम के लिए आ रहे हैं। कुशवाहा ने इतना जरूर कहा कि बिहार में सबसे बड़े नेता नीतीश कुमार हैं, इसमें कोई शक नहीं है। कुशवाहा से जब पूछा गया कि क्या दोनों दल 2024 के लोकसभा चुनाव और उसके एक साल बाद 2025 में बिहार विधानसभा चुनाव एक साथ लड़ेंगे इस पर उन्होंने कहा कि आने वाले समय में क्या होगा, इसकी भविष्यवाणी कौन कर सकता है।
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