उ(व-सेना में तांडव

उ(व-सेना में तांडव

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
महाराष्ट्र का विपक्षी गठबंधन भाजपा के लिए बहुत बडा सिरदर्द है। इसका कारण शिवसेना है जो भाजपा की विचारधारा की सबसे बड़ी समर्थक है। शिवसेना के साथ कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने गठबंधन करके सरकार बनायी है जिसे महाविकास अघाड़ी (एमवीए) कहा जाता है। इस शिव-सेना में वैचारिक मतभेद तो शुरू से चल रहे हैं लेकिन अभी कुछ दिन पहले सम्पन्न हुए राज्यसभा चुनाव में उद्धव ठाकरे के प्रत्याशी की पराजय ने मतभेद की खाईं को और चैड़ा कर दिया है। संजय पवार शिवसेना के दूसरे उम्मीदवार थे और शरद पवार की पार्टी चाहती तो निर्दलीय विधायक भाजपा के प्रत्याशी को वोट नहीं देते। इसी तनावपूर्ण माहौल में आगामी 20 जून को विधान परिषद के चुनाव होने हैं। विधान परिषद की 10 सीटों पर कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी ने दो-दो प्रत्याशी उतार दिये हैं। उधर, भाजपा ने भी पांच उम्मीदवार खड़े कर दिये। विधान परिषद की 10 सीटों के लिए 11 उम्मीदवार हो गये हैं। एमवीए के दो विधायक आरोपित हैं और उनकी याचिका कोर्ट ने खारिज कर दी है। इसलिए वे मतदान नहीं कर पाएंगे। एमवीए की एकता टूटने से इनके उम्मीदवार को पराजय का सामना करना पड़ सकता है।
महाराष्ट्र में विधान परिषद की 10 सीटों के लिए 20 जून को होने वाले चुनाव से पहले सत्तारूढ़ महा विकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन में अनबन नजर आ रही है। चुनाव से कुछ दिन पूर्व ही एमवीए में नाराजगी का दौर शुरू हो गया है। शिवसेना ने अपने सहयोगी एनसीपी और कांग्रेस से कहा है कि वह अपने-अपने उम्मीदवारों को जिताने के लिए अतिरिक्त वोट हासिल करने के मामले में उससे सहयोग की उम्मीद न करें। इसके चलते अब कांग्रेस और एनसीपी निर्दलीय और छोटे दलों को अपनी तरफ खींचने की कोशिश में जुट गई है। तीनों पार्टियों का एक-दूसरे के प्रति व्यवहार राज्यसभा चुनाव से पूर्व ठीक उलट नजर आ रहा है। माना जा रहा है कि राजस्यभा चुनाव में शिवसेना के दूसरे उम्मीदवार संजय पवार की हार एमवीए में मनमुटाव का कारण बन गई है, क्योंकि शिवसेना के शीर्ष नेताओं को पता है कि राज्यसभा के चुनाव में भाजपा को वोट देने वाले कुछ निर्दलीय विधायकों के कुछ एनसीपी नेताओं के साथ घनिष्ठ संबंध हैं। एमवीए में शामिल तीनों पार्टियों में से प्रत्येक ने एमएलसी की सीटों के लिए दो-दो उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने उद्योग मंत्री सुभाष देसाई और परिवहन मंत्री अनिल परब को यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सौंपी है कि पार्टी के दोनों उम्मीदवार चुने जाएं और क्रॉस वोटिंग न हो। वहीं, एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने भी इस पर जोर देने के लिए पार्टी के वरिष्ठ सदस्यों के साथ बंद कमरे में बैठक की है। कांग्रेस की तरफ से वरिष्ठ नेता और राजस्व मंत्री बालासाहेब थोराट पार्टी के दो उम्मीदवारों को निर्वाचित कराने की जिम्मेदारी संभालेंगे। पार्टी कुछ निर्दलीय और छोटी पार्टियों को दूसरी सीट के लिए जरूरी वोट हासिल करने के लिए लुभा रही है। एक एमएलसी उम्मीदवार को चुनाव जीतने के लिए विधायकों की वास्तविक संख्या के आधार पर आवश्यक न्यूनतम कोटा 26 या 27 होने की संभावना है। बता दें कि राज्य विधानसभा में 288 सीटें हैं, लेकिन प्रभावी ताकत 287 है, क्योंकि इस साल की शुरुआत में शिवसेना के एक विधायक की मृत्यु हो गई थी। एनसीपी के दो विधायक पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री नवाब मलिक मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में जेल में हैं, वे मतदान में भाग नहीं ले पाएंगे।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी सरकार में मंत्री नवाब मलिक और पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख की 20 जून को होने वाले महाराष्ट्र विधान परिषद चुनाव में वोट डालने की अनुमति देने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी है। जेल में बंद दोनों नेता अब राज्यसभा चुनाव के बाद एमएलसी चुनाव में भी वोट नहीं डाल पाएंगे।
जस्टिस एनजे जमादार ने देशमुख की जमानत याचिका में एक अंतरिम आवेदन और मलिक द्वारा दायर एक नई याचिका पर आदेश पारित किया जिसमें केवल पुलिस सुरक्षा का उपयोग करके अपना वोट डालने की अनुमति मांगी गई थी। राज्यसभा चुनाव में मतदान का अधिकार नहीं मिलने के बाद नबाव मलिक और अनिल देशमुख ने विधान परिषद चुनाव में वोट देने के अधिकार को लेकर फिर से बॉम्बे हाईकोर्ट का रूख किया था लेकिन कोर्ट ने दोबारा उनकी याचिका को अस्वीकार कर दिया और उन्हें वोट डालने की अनुमति नहीं दी गई। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के दोनों नेता न्यायिक हिरासत में हैं। नवाब मलिक और अनिल देशमुख के खिलाफ अलग-अलग मामलों में प्रवर्तन निदेशालय मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों की जांच कर रहा है। जांच एजेंसी ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 62(5) के तहत बार का हवाला देते हुए अनिल देशमुख और नवाब मलिक के उन आवेदनों का विरोध किया था, जो जेल में बंद व्यक्ति को चुनाव में मतदान करने से रोकता है।
भारतीय जनता पार्टी समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार सदाभाऊ खोत और राकांपा के शिवाजीराव गजरे ने सोमवार को महाराष्ट्र विधान परिषद चुनाव के लिए अपना नामांकन वापस ले लिया, जिससे 10 सीटों के लिए अब मैदान में 11 उम्मीदवार बचे हैं। पिछले सप्ताह राज्यसभा चुनाव के बाद अब राज्य में भाजपा और सत्तारूढ़ महा विकास अघाडी के बीच एक और मुकाबला देखने को मिलना तय है। एक अधिकारी ने बताया कि विधान परिषद की 10 खाली सीटों के लिए 11 उम्मीदवार मैदान में हैं, जिसके लिए 20 जून को मतदान होगा। महाराष्ट्र की पूर्ववर्ती देवेंद्र फडणवीस सरकार (2014-19) में पूर्व मंत्री, खोत ने विपक्षी भाजपा के समर्थन से एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन दाखिल किया था। चुनाव में जीत हासिल करने के लिए प्रत्येक उम्मीदवार को 25.81 वोट हासिल करने होते हैं, जहां 288 सदस्यीय विधानसभा के सदस्य निर्वाचक मंडल बनाते हैं। भाजपा ने पांच उम्मीदवार उतारे हैं, जबकि सत्तारूढ़ एमवीए के एक घटक कांग्रेस ने दो उम्मीदवारों को टिकट दिया है। हालांकि, भाजपा और कांग्रेस के पास अपने क्रमशः पांचवें और दूसरे उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त वोट नहीं हैं। राज्यसभा चुनावों के विपरीत, जिसमें विधायकों को वोट डालने के बाद संबंधित पार्टी के अधिकृत प्रतिनिधि को अपना मतपत्र दिखाना होता था, विधान परिषद के चुनाव गुप्त मतदान के माध्यम से होंगे, जिससे क्रॉस-वोटिंग और निर्दलीय एवं छोटे दलों के सदस्यों के निष्ठा बदलने की आशंका बरकरार है। भाजपा ने निवर्तमान एमएलसी प्रसाद लाड और प्रवीण दारेकर को फिर से टिकट दिया है, और राम शिंदे, उमा खापरे और श्रीकांत भारतीय को भी टिकट दिया है। प्रदेश की वरिष्ठ भाजपा नेता पंकजा मुंडे को सूची में जगह नहीं मिली। इस कदम ने मुंडे के समर्थकों को निराश किया। कांग्रेस ने मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष भाई जगताप और पूर्व मंत्री चंद्रकांत हंडोरे को मैदान में उतारा है। राकांपा ने विधान परिषद के वर्तमान सभापति रामराजे नाइक निंबालकर और पूर्व मंत्री एकनाथ खडसे को मैदान में उतारा है। शिवसेना ने आदिवासी बहुल नंदुरबार जिले से पार्टी के पदाधिकारी सचिन अहीर और अमश्य पड़वी को उम्मीदवार बनाया है।
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