प्राचीन काल में अंगकोर वाट, हम्पी, आदि स्थानों पर भव्य मंदिर निर्माण करनेवाले राजा-महाराजाओं ने उनका उत्तम प्रबंधन किया था । इन मंदिरों के माध्यम से गोशाला, अन्नछत्र, धर्मशाला, शिक्षाकेंद्र चलाकर समाज को मूल्यवान सहायता की जाती थी । इसके कारण ही हिन्दू समाज मंदिरों से जुडा होता था; परंतु अब मंदिरों का इतना व्यापारीकरण हो गया है, कि वे (शॉपिंग) ‘मॉल’ बनने लगे हैं तथा तीर्थक्षेत्रों को विकास के नामपर पर्यटनस्थल बनाया जा रहा है । यह रोकना आवश्यक है । इसलिए मंदिरों के न्यासियों तथा पुरोहितों को मंदिरों का आदर्श प्रबंधन करना चाहिए । यह साध्य करने के लिए ‘मंदिरों का आदर्श प्रबंधन’ (दि टेंपल मैनेजमेंट)
पाठ्यक्रम प्रारंभ करने की महत्त्वपूर्ण सूचना प्रथम हिन्दू राष्ट्र संसद में दी गई । दशम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन के द्वितीय दिन ‘मंदिरों का सुप्रबंधन’ इस विषय पर हिन्दू राष्ट्र संसद में विविध मंदिरों के न्यासी, भक्त, अधिवक्ता और हिन्दुत्वनिष्ठों ने अभ्यासपूर्ण विचार व्यक्त किए । इस संसद में सभापति के रूप में ओडिशा के श्री. अनिल धीर, उपसभापति के रूप में हिन्दू जनजागृति समिति के धर्मप्रचारक पू. नीलेश सिंगबाळ तथा सचिव के रूप में हिन्दू जनजागृति समिति के श्री. आनंद जाखोटिया ने कामकाज देखा । अढाई घंटे चली इस प्रदीर्घ चर्चा के पश्चात प्रथम हिन्दू राष्ट्र संसद में ‘हिन्दुओं के मंदिर सरकार के नियंत्रण से मुक्त कर भक्तों के नियंत्रण में दिए जाएं’, ‘मंदिर के कामकाज के लिए केवल हिन्दुओं की ही नियुक्ति की जाए, ‘मंदिर परिसर में मद्य, मांस प्रतिबंधित हो तथा अन्य धर्मियों का प्रसार प्रतिबंधित हो, आदि प्रस्ताव पारित किए गए । ‘जयतु जयतु हिन्दुराष्ट्रम की घोषणाओं के साथ उपस्थित धर्मनिष्ठों ने इसका अनुमोदन किया ।
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