मौसम और मोहब्बत

मौसम और मोहब्बत

हल्की हल्की बारिस में 
मज़ा बहुत आता है। 
जैसे जैसे गिरती है 
बदन पर पानी की बूंदे। 
अजब सी गुद गुदी 
मेहसूस होने लगती है। 
और कमल से फूल खिल 
उठते है अंदर ही अंदर।। 

मुझे ज्यादा पसंद है
चांदनी रात में निकलना। 
और इंतजार रहता है 
अपनी मेहबूब का। 
अगर साथ आ जाये 
बाग में मेहबूब जो। 
तो लगता है चाँद 
स्वयं आज साथ है।। 

हो अगर प्यार सच्चा तो
इंद्र चांदनी बिखेर देते है। 
घरा भी अपने आपको 
हरा भरा कर लेती है। 
बसुन्धरा भी फूलो की
खुशबू बिखेर देती है। 
और मोहब्बत का मसीहा 
मोहब्बत करना सिखाता है।। 

जैसे जैसे चाँद की
चाँदनी बिखरती है। 
वैसे वैसे मोहब्बत का
रंग चढ़ने लगता है। 
फिर पूनम की रात को
दोनों का मिलन होता है। 
और दो आत्माओं का 
एक ही चेहरा दिखता है।
सच में मोहब्बत का 
सही रूप ये ही होता है।। 

जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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