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महर्षि भृगुस्थान और वंशावली


महर्षि भृगुस्थान और वंशावली

--:भारतका एक ब्राह्मण.संजय कुमार मिश्र 'अणु'
महर्षि भृगु का आश्रम विष्णु विमुक्त क्षेत्र में था।जो पितृतीर्थ गया के संनिकट है।यह स्थान अभी औरंगाबाद जिला मुख्यालय का अंतिम उतरी क्षेत्र में पूनपुन नदी के तट पर अवस्थित है।वह स्थान तब धर्मारण्य के नाम से जाना जाता था।इस स्थान पर पुनपुन और मंदार नदी का मिलन स्थल है।।पहले इसे भृगुरारी कहते थे।कालांतर में इसे भेडारी के नाम से जाना जाता है।यह स्थान अभी गया दाउदनगर राजमार्ग पर अवस्थित देहोरा से दक्षिण पश्चिम में है।
देहोरा में ऐतिहासिक और पौराणिक देवासुर संग्राम हुआ था जहाँ असुरों से देव गण हार गये थे।जहाँ यह घटना घटी थी वह जगह देवहारा है जो आजकल देहोरा के नाम से जाना जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि ब्रह्मा के मनु,मरीची,दक्ष,नारद,अंगीरा,अत्रि, वशिष्ठ क्रतु, पुलह,कर्दमभृगु आदि पुत्र हुये।महर्षि भृगु की ख्याति, दिव्या और पुलोमा नाम की तीन पत्नी थी।
ख्याति से भृगु को धाता और विधाता नाम के दो पुत्र हुये।एक पुत्री भी हुई जिसका नाम श्री था जो विष्णु से व्याही गई थी।धाता को पत्नी आयती से प्राण नाम का पुत्र हुआ।प्राण का पुत्र द्युतिमान हुआ और द्युतिमान का पुत्र हुआ वर्तमान।
विधाता को नीति नाम की पत्नी थी जिससे ऋषि मृकंड का जन्म हुआ।मृकंड के पुत्र हुए मार्कंडेय और मार्कंडेय का वेद नामक पुत्र हुआ।
दिव्या से भृगु को उसना और त्वष्टा नाम के दो पुत्र हुये।पौलमी का विवाह पूर्व में दंस से हुआ था फिर पौलम ने अपनी पुत्री का विवाह भृगु से कर दिया।पौलमी से भृगु को दो पुत्र हुये ऋचीक और च्यवन।
एक दिन दंस अपनी पूर्व पत्नी पौलमी को गर्भावस्था में द्वेष वस अपहरण कर लिया था।जब महर्षि भृगु को इस बात की जानकारी हुई तब कुश को अभिमंत्रित कर दंस पर संधान कर दिया।जिससे दंस की मृत्यु हुई और पुलोमा का वहीं पर बुंद-बुंदकर गर्भश्राव हुआ और एक शिशु का जन्म हुआ।जिसे च्यवन नाम से ख्याति मिली।जहाँ च्यवन का जन्म हुआ वह स्थान आज अरवल जिले के महेंदिया से सटे मधुश्रवां नाम का जगह है।बाद में च्यवन ने अपनी साधना स्थली के तौर पर देवकुंड को धारण किया।इन्हीं च्यवन के अग्रज थे ऋचीक।
महर्षि ऋचीक की पत्नी अवध की कुमारी सत्यवती थी इनके पुत्र हुए जमदग्नि।जमदग्नि की शादी गाधी पुत्री रेणुका से हुई।रेणुका राजर्षि विश्वामित्र की बहन थी। जमदग्नि और रेणुका के पुत्र हुए भगवान राम।जो आतातायी हैहय वंशीय क्षत्रियों का नाश किये थे।हैहय वंशीय क्षत्रियों की राजधानी माहिष्मती थी जो विष्णु विमुक्त क्षेत्र से नातिदुर नद्य स्वर्णबाहु के पश्चिमी तट पर था।यहीं राम ने सहस्रार्जुन के साथ युद्ध किया था और उसकी सहस्रों भुजा काट डाली थी।वह स्थान आज सहस्र और राम के योग से सहस्रराम बना जिसे वर्तमान समय में सासाराम के नाम से जाना जाता है।
महर्षि च्यवन को अप्नुवान और आत्मवान नाम के दो पुत्र हुये।आत्मवान की शादी नाहुषी से हुई थी।इनके दो पुत्र हुए।एक का नाम और्व था और दुसरे का नाम दधीच।और्व राजर्षि बना और अपना नया नगर बसाया जिसे और्वली नाम दिया।ये और्वली आज अरवल के नाम से जाना जाता है जो कि वर्तमान समय में मगध प्रमंडल का एक जिला है।इसी दधीच का पुत्र हुआ दधीचि जो जन कल्यण के निमित्त अपने शरीर को भी दान कर दिया।जिससे त्वष्टा ने तीन धनुष एक चक्र और वज्र का निर्माण किये।एक धनुष विष्णु को प्रदान किया गया जिसका नाम शारंग है।दुसरा धनुष देवराज इंद्र को सुपुर्द किया गया जिसे गांडीव कहा गया।तीसरा धनुष शिव को मिला जो की पिनाक के नाम से प्रसिद्धि रहा।चक्र का नाम सुदर्शन हुआ जो भगवान विष्णु का दिव्यास्त्र बना।वज्र का अधिपति इंद्र को बनाया गया।
मानव मात्र के कल्यण में निरत महर्षि भृगु और उनका पुरा परिवार योग दिया।महर्षि भृगु के हीं पुत्र महर्षि वशिष्ठ हुये।महर्षि वशिष्ठ के पुत्र हुए परासर और ऋषि परासर के पुत्र हुये कृष्णद्वैपायन जिसे वेदव्यास के नाम से भी जाना जाता है।भगवान वेदव्यास के पुत्र हुये शुकदेव।
----------------------------------------वलिदाद,अरवल(बिहार)804402.
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