लौट आएगी हवा फिर देश में
जल पताली थे हुए जो गाँव के
मन विकल से हो गये थे छाँव के
प्रातकाली में हवन की गंध बन
संस्कृति आ जाएगी फिर वेष में।
जिन थपेड़ों ने जड़े थे तमाचे
हम उन्हें क्यों अकारण ही समाचें
आज अपना व्योम सा सब है खुला
दिशाओं में दीप्त राष्ट्र दिनेश है।
वनसपतियों में भरे देवत्व फिर
और वसुधा में खिले बंधुत्व फिर
आर्ष चेता जागरित विचरण करे
यही तो सत्कर्म-धर्म विशेष है।
शुद्ध मेधा पावनी प्रक्षालिता
प्रबोधित करती अकाम प्रमुग्धता
मोद का वातावरण परित: वसे
सृष्टि का अनुपम यही संदेश है।
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