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मोहब्बत सीमित हो गई..

मोहब्बत सीमित हो गई..

अपने दिल में थोड़ी 
तुम जगह दे देना। 
अपने स्नेह प्यार का 
दिलपे लेप लगा देना। 
बहुत मिले जिंदगी में 
मुझे अपने बनकर। 
पर शायद तुम मेरे
दिलको समझ पाई हो।।

निगाहों से तो कोई
घायल कर देता है। 
जुबा से भी हमदर्दी  
सभी जता देते है। 
दिल की पीड़ा को
समझने वाले कम है। 
इसलिए तो मोहब्बत अब
चलचित्रों तक सीमित है।। 

घाव दिलके भरते नहीं
भाव दिलके बनते नहीं। 
आँखो के आँसू रुकते नहीं
मुँह से शब्द निकलते नहीं। 
फिर भी मुस्कारते हुए 
मेफिलो में जाते रहते। 
और गीत गजल गाकर
लोगों के दिल बहलाते रहते।। 

दर्द को दर्द से काट लेते है
दर्द को दर्द से बाट लेते है। 
चाँद को चांदनी में देखते है
प्यार से दिल जीत लेते है। 
फिर भूलकर गमों को 
उसे खुशी दे देते है।
फिर मोहब्बत के बाग में 
फूल बनकर महक उठते है।। 

जय जिनेंद्र 
संजय जैन "बीना" मुंबई
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