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कभी कभी तो मुक्त गगन में

कभी कभी तो मुक्त गगन में

देखा कर भाई 

विचरण करते  भाव विहग-से
अपने भी भीतर
उड़ते पंख पसारे अभिनव
संसृति के सुंदर
उर के चंचल चारु नयन में
देखा कर भाई   

शून्य नहीं ग्रह नक्षत्रों से
भरा हुआ आकाश
सृष्टि व्यष्टि की नहीं, समेकित
है जीवन विश्वास। 
आलोड़न विस्तम्भन  जन में
 देखा कर भाई। 

जल तरंग के कल्लोलों में
है दिखता जीवन
पर्वत खंड शिलाओं में भी
रिसता है यौवन
आशाओं के मधु बचपन में
देखा कर भाई। 

आँचल में छिपकर जितनी
लोरियाँ सुनी होंगी
अमराई मे चुपके से कैरियाँ
चुनी होंगी
उस अतीत के संगुंफन मे
देखा कर भाई।
रामकृष्ण
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