दौड़ रहे हैं अंधी दौड़ में,

दौड़ रहे हैं अंधी दौड़ में,

दौड़ रहे हैं अंधी दौड़ में, पब्लिक स्कूलों में जाते,
सरकारी का नाम सुना तो, नाक मुँह भी सड़ जाते।
जितने विद्या मंदिर हैं, संस्कार सब सिखलाते,
शिक्षा का स्तर ऊँचा है, बच्चों को वहाँ नहीं पढ़ाते।
बिन ट्यूशन ही बच्चे पढ़ते, ज्ञान की बातें होती,
राष्ट्र धर्म और संस्कृति, मानवता भी समझाते।
झूठ मूठ का दिखलावा, झूठी शान की बातों में,
निज कुंठाएँ से ग्रसित ही, शिक्षा पर दोष लगाते।
आमदनी आठ आने वाले, बस सपनों पर पलने वाले,
वर्तमान से भविष्य तक, बच्चों में कुंठाएँ भरते।

अ कीर्ति वर्द्धन
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