मांसाहार छोड़ें पृथ्वी बचायें

मांसाहार छोड़ें पृथ्वी बचायें

लेखक - अतुल मालवीय
*अहिंसा परमो धर्म:* *परस्परोपग्रहो जीवानाम*
*भगवान महावीर स्वामी* के *2621वें जन्म कल्याणक दिवस* पर आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं
वर्तमान परिस्थितियों में संपूर्ण मांसाहार ही त्यागना परम आवश्यक हो गया है| यही एकमात्र उपाय है जिससे पृथ्वी को बचाया जा सकता है।
मांसाहारियों द्वारा प्रायः ये तर्क प्रस्तुत किया जाता है कि यदि उन्होंने मांस के स्थान पर शाकाहार को अपना लिया तो वर्तमान शाकाहारियों के लिए खाद्यपदार्थ कम पड़ जायेगा। ये बिल्कुल गलत है। बीबीसी ने 27 सितंबर 2016 को एक विस्तृत एवं तथ्यपूर्ण आर्टिकल छापा - विश्व के यदि सभी मनुष्य अचानक शाकाहारी हो जायें तो क्या होगा? इसके आश्चर्यजनक तथ्यों से आप को भी अवगत कराता हूँ:
1. लोगों की गलत धारणा है कि पृथ्वी पर होने वाले कार्बन उत्सर्जन का अधिकांश हिस्सा, वाहनों, मशीनों और कारखानों से होता है। हकीकत में इसका मुख्य कारण मांसाहार है। यदि सभी लोग मांसाहार त्याग दें तो इन गैसों का उत्सर्जन 60% तक घट जायेगा, वहीं अगर डेयरी उत्पाद भी त्याग दें (वीगन बन जायें) तो ये उत्सर्जन 70% कम हो जायेगा।
2. पृथ्वी पर उपलब्ध कुल 12 अरब एकड़ कृषि योग्य भूमि में से 68% हिस्सा पशुपालन के लिए उपयोग किया जाता है और उस 68% में भी 80% मांसाहार हेतु पशुपालन जबकि बाकी मात्र 20% दुग्ध उत्पादों हेतु पशुपालन के लिए होता है। इसका साफ मतलब है कि मांसाहार त्यागने मात्र से लगभग आधी कृषिभूमि पुनः घास के मैदानों और जंगलों के लिए उपलब्ध होकर न सिर्फ कार्बन उत्सर्जन को सोख लेगी बल्कि पृथ्वी पर तेजी से समाप्त होती जैव-विविधता को वापिस ले आयेगी।
3. मांसाहारी ये तर्क देंगे कि फिर उनके प्रयोग हेतु बढ़े हुए शाकाहार का क्या होगा? ये कहाँ से आयेगा? वे शाकाहारियों को प्रायः कहते दिखते हैं कि अगर हम तुम्हारा खाना खाने लग गये तो तुम भूखों मर जाओगे| इसका उत्तर है कि मांसाहार त्यागने से उपलब्ध जमीन में से मात्र 10 से 20% ही खाद्य आपूर्ति के इस अंतर को पूरा करने के लिए पर्याप्त होगी।
4. पृथ्वी पर प्रत्येक वर्ष जो लगभग साढ़े तीन अरब चौपाया जानवर एवं 150 अरब मुर्गे मुर्गियाँ क्रूरतापूर्वक समाप्त किये जाते हैं उनमें से 72% किसी न किसी बीमारी अथवा संक्रमण से ग्रसित होते हैं, वे और उनके अंडे भक्षण करने वाले व्यक्ति के लिए खतरनाक बीमारी एवं संक्रमण का कारण बनते हैं। यदि समस्त लोग शाकाहारी हो जायें तो पूरी दुनिया में प्रत्येक वर्ष 70 लाख लोगों को मरने से बचाया जा सकता है। ये संख्या 80 लाख हो सकती है अगर सभी वीगन शाकाहारी बन जायें। ये दुनिया की अर्थव्यवस्था पर इतना भारी भरकम सकारात्मक प्रभाव डालेगा कि पूरे विश्व के सकल उत्पाद (GDP) की 2 से 3% राशि प्रतिवर्ष बचायेगा। लोगों को ये भ्रम है कि इस तरह के बीमार जानवर मात्र अविकसित देशों में मांसाहार की तरह प्रयोग किये जाते हैं।
इस संदर्भ में मैंने स्वयं मशहूर लेखक रोबिन कुक का सत्य तथ्यों पर आधारित उपन्यास टॉक्सिन जब पढ़ा तब ज्ञात हुआ कि किस तरह से बीमार जानवरों एवं मुर्गों को KFC एवं McDonalds जैसी ख्यातिप्राप्त रेस्तरां चेन के वधगृहों में चुपचाप काट कर भोजन हेतु परोस दिया जाता है और खाने वाले गंभीर बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं। मेरा दावा है कि यदि मांसाहारी इस पुस्तक को पढ़ लेंगे तो उनमें से अधिकाँश मांसाहार त्याग देंगे| पश्चिमी देशों के पशु वधगृहों में जिस तरह जीवित जानवरों एवं मुर्गों पर खोलते हुए पानी को डालकर उनकी चीत्कारों के बीच उनकी खाल को उधेड़ा जाता है, क्रूरता की सभी पराकाष्ठाओं को पार कर जाता है|
5. जैसा मैं पहले ही उदाहरण देता आया हूँ कि क्यों शाकाहार मनुष्य का स्वाभाविक आहार है। अफ्रीका के घने वर्षावनों में रहने वाला पर्वतीय गुरिल्ला जो संख्या में मात्र 800 बचे हैं, मनुष्य का सबसे करीबी भाई है। मुझे स्वयं इस विशाल एवं शक्तिशाली जानवर को वर्षावनों में जाकर देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है| जहाँ अन्य एप्स (बंदर प्रजाति) और मनुष्य करीब 2 करोड़ वर्ष पूर्व एक दूसरे से अलग अलग बन गए, पर्वतीय गुरिल्ला वह प्राणी है जो मात्र 50 लाख वर्ष पूर्व मनुष्य ही था। ये एक स्थापित सत्य है कि अपने प्राकृतिक स्थलों में रहने वाले जानवर प्रकृति अनुरूप व्यवहार करते हैं। पर्वतीय गुरिल्ला, जो मस्तिष्क और शरीर की बनावट में 98% से भी अधिक मनुष्य से समानता रखता है और वस्तुतः हम मनुष्यों का बड़ा आकार ही है, मात्र शाकाहारी भोजन ही ग्रहण करता है जबकि उन वर्षा वनों में मांसाहारी भोजन भी प्रचुरता में उपलब्ध है। इससे सिद्ध होता है कि शाकाहार ही मनुष्य का स्वाभाविक आहार है और उसने मांसाहार को मजबूरीवश तब ग्रहण किया होगा जब शाकाहार उपलब्ध नहीं रहा होगा।
तो भाइयों और बहिनों, जब शाकाहार प्रचुर मात्रा में न सिर्फ उपलब्ध है और मांसाहार से कम स्वादिष्ट नहीं, सुपाच्य भी है तो क्यों न मांसाहार त्याग दिया जाये और हमारी प्यारी पृथ्वी को बचा लिया जाये।
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