अब नयी रौशनी के लिए
कोई सूरज नुमा चाहिए।
चक्रवाती हवाएँ कभी
मूल की आस्था तोड़ दे
धैर्य की कीमती शाख भी
एक झटके कहीं मोड़ दे
इसलिए दृढ़ परिघ केलिए
आत्मबल खुशनुमा चाहिए।
पूछता है यहाँ कौन अब
इस धरा की अपेक्षाएँ क्या
सब फलक व्यक्तिगत हो रहे
स्वार्थजीवी हुए बेहया
इसलिए उच्ताता पर चढ़े
कोई शीतल हवा चाहिए।
सूचनाओं में बिखरे हुए
हैं अपरिचित कई खुशखबर
हो सके तो सहेजें चुनें
बन सके कोई तो हमसफर
मुट्ठियों में न अँट पाएगी
चाँदनी भी सवा चाहिए।
रामकृष्ण
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