कल के कद्दावर

कल के कद्दावर

      ---:भारतका एक ब्राह्मण.

        संजय कुमार मिश्र"अणु"
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कल के कद्दावर-
आज हो गये दर-ब-दर।
लगी नजर है इस कदर-
कि हो गये तितर-बितर।।
     न काम के न काज के
    अलाप बस सुराज के
    न जन से सरोकार कुछ
   और दावेदार तख्तोताज के
   बस खुद का विकास हो
   है घृणित सोच इस कदर।।
न देश पर गुमान है,
न नीति कुछ विधान है
विरोध के लिये विरोध
बस इसी पर ध्यान है
न लोक लाज बचा सके
ये काटकर बडी उमर।।
    हो निज स्वार्थ मे है अंधा,
    थे पकडे कमजोर कंधा,
    अनाप-सनाप जगहो पर-
    थे मार रहे पंजा
    जन भावनाओं के विपरीत-
    हो दुष्परिणाम से बेखबर।।
न ममता चली न माया,
ऐसा जनमत बौराया,
जिसे वे कहते रहे निकम्मा
फिर उसीको जितवाया,
सब एक साथ उखाड़ गये-
ऐसा ही कुछ उठा लहर।।
       ये मेरा देश है बदल रहा,
       देख दुश्मन का मन दहल रहा
      ये जन्म का राजकुमार है
      जो है राजपथ पर टहल रहा,
      योगी बने राजयोगी-
      जनता कही है एक स्वर।।
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वलिदाद,अरवल(बिहार)८०४४०२
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