लड़की हूँ मैं लड़ सकती हूँ

लड़की हूँ मैं लड़ सकती हूँ,

झाड़ चने के चढ़ सकती हूँ।
इतिहास गवाह है काल साक्षी,
सास ननद से अड़ सकती हूँ।
लड़की हूँ मैं लड़ सकती हूँ।

आँसू को हथियार बनाकर,
शब्दों की तलवार बनाकर,
नज़रों से भी बाण चलाकर,
सबको घायल कर सकती हूँ।
लड़की हूँ मैं लड सकती हूँ।

बाँध कमर में फैंटा अपने,
दिखलाती दुश्मन को सपने।
गली मोहल्ले घर आँगन में,
बातों से युद्ध करा सकती हूँ।
लडकी हूँ मैं लड़ सकती हूँ।

भरी भीड़ दिखलाकर पंजा,
बातों से करवा सकती दंगा।
समझ न मुझको ऐसा वैसा,
रुख़ हवा का बदल सकती हूँ।
लड़की हूँ मैं लड़ सकती हूँ।

कोई ढूँढे मुझमें ममता,
माँ जैसी हो जिसमें समता।
कोई ढूँढ रहा प्रेयसी
कुछ को झाँसी रानी लगती हूँ।
लड़की हूँ मैं लड़ सकती हूँ।

 हैं मुझ पर हथियार अनूठे,
अणु परमाणु से वार अनुठे।
समर प्रांगण हार गयी तो,
अदाओं से भी मरवा सकती हूँ।
लडकी हूँ मैं लड़ सकती हूँ।

घर आँगन से समर प्रांगण,
सन्त फ़क़ीर साधु की धड़कन,
राजा रंक दिवाने मेरे,
पल में सबको लड़वा सकती हूँ।
लड़की हूँ मैं लड़ सकती हूँ।

कांग्रेस ने मुझको जाना,
मेरी क्षमता को पहचाना।
जीत सकी न कोई सीट मैं,
बिन जीते नेता बन सकती हूँ।
लड़की हूँ मैं लड़ सकती हूँ।

डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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