पंजाब में आप की सियासत

पंजाब में आप की सियासत

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
राजनीति में चुनाव जीतकर सरकार बनाना ही पर्याप्त नहीं होता है। इसके बाद सत्ता को बनाये रखने और उस पर हाईकमान का नियंत्रण रखना दो सबसे महत्वपूर्ण कार्य होते हैं। पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) ने इस बार प्रचण्ड बहुमत से सरकार बनायी है लेकिन लोगों का मानना है कि वहां आप के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार भगवंत मान का ‘मान’ कुछ ज्यादा है। यही कारण रहा कि पहले अरविन्द केजरीवाल ने अपने नाम पर ही चुनाव लड़ने का विचार किया था लेकिन उन्हें 2017 की याद आ गयी जब आप मुख्य विपक्षी दल तो बन गयी लेकिन सत्ता नहीं मिली थी। इसीलिए पंजाबी चेहरे को सामने रखा गया और उस चेहरे ने राज्य में सरकार भी बना ली। अब पार्टी और सरकार में संतुलन बनाने के लिए अरविन्द केजरीवाल राज्यसभा की गोटें बिछा रहे हैं। इसी 31 मार्च को पंजाब की पांच राज्यसभा सीटांे का चुनाव होना है। इसलिए केजरीवाल ने सबसे पहले प्राथमिकता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष राघव चड्ढा को दी है। श्री चड्ढा भी मुख्यमंत्री बनने की लाइन में थे। चड्ढा के अलावा प्रोफेसर संदीप पाठक और क्रिकेटर हरभजन सिंह को भी राज्यसभा में भेजकर आम आदमी पार्टी संतुलन बना रही है। आम आदमी पार्टी ने राज्य विधानसभा की 117 सीटों में से 92 पर कब्जा जमाया है। राघव चड्ढा दिल्ली की राजेन्द्र नगर विधानसभा सीट से 2020 में पहली बार ही विधायक बने। इस प्रकार केजरीवाल के करीबी राघव चड्ढा पंजाब की राजनीति में दखल रख सकेंगे। दरअसल मान बड़ी तेजी से कार्य कर रहे हैं।
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के दौरान पंजाब में ‘आप’ को मिली धमाकेदार जीत के बाद पार्टी के सर्वेसर्वा दिल्ली के मुख्यमन्त्री अरविन्द केजरीवाल के कहे हुए शब्दों ने चैंकाया भी है। मतगणना के दौरान जीत के बढ़ते ग्राफ को देख कर केजरीवाल ने कहा कि ‘पंजाब की जीत डरा रही है।’ सामान्य तौर पर इन शब्दों का भाव है कि जैसे केजरीवाल कह रहे हों कि देश की जनता ने बड़ी जिम्मेवारी के लिए पार्टी से नई उम्मीद बान्धी है और जनता की पार्टी के प्रति बढ़ी अपेक्षा डरा रही है। हालांकि कुछ लोग यह भी पूछ रहे हैं कि क्या भगवन्त मान की लोकप्रियता ने केजरीवाल को भी डरा दिया? केजरीवाल भगवन्त मान के अपने से ऊंचे कद को बर्दाश्त कर पाएंगे ? केजरीवाल व मान पर यह कहावत बिल्कुल सटीक बैठती है कि गुरु गुड़ रहे और चेला शक्कर हो गए। केजरीवाल दिल्ली जैसे छोटे व केन्द्र शासित राज्य के मुख्यमन्त्री हैं तो भगवन्त मान दिल्ली से कई गुणा बड़े और पूर्णरुपेण राज्य के सूबेदार बन गए हैं। दिल्ली में केजरीवाल को हर निर्णय के लिए उप-राज्यपाल के मुंह की ओर तकना पड़ता है जबकि भगवन्त मान के सामने ऐसी कोई विवशता नहीं होगी। केजरीवाल के नियन्त्रण में दिल्ली पुलिस सहित मुख्यमन्त्री के अनेक अधिकार नहीं हैं परन्तु भगवन्त मान के पास एक पूर्ण राज्य के मुख्यमन्त्री की सारी शक्तियां होंगी। देश के मुख्यमन्त्रियों की पंक्ति में मान को केजरीवाल से अधिक ‘मान’ मिलना तय है और केजरीवाल के स्वभाव की ओर देखें तो यह उनको अखर सकता है। पंजाब के विगत विधानसभा चुनावों में केजरीवाल ने अपना चेहरा आगे कर राजनीतिक पासा फेंका था परन्तु, उन्हें आशातीत सफलता नहीं मिली। अबकी बार 2022 के चुनावों में भी केजरीवाल ने प्रचार का प्रारम्भ बिना पंजाबी नेता के चेहरे के किया। इसको लेकर पार्टी के स्थानीय नेताओं व कार्यकर्ताओं में आक्रोश भी था कि केजरीवाल दिल्ली के लोगों को आगे ला रहे हैं।
ध्यान, आम आदमी पार्टी का गठन नवम्बर 2012 में हुआ और तब से पार्टी के त्रराष्ट्रीय संयोजक पद पर अरविन्द केजरीवाल ही आसीन चले आ रहे हैं। केवल इतना ही नहीं पार्टी व दिल्ली सरकार के महत्त्वपूर्ण पद भी उन्होंने अपने चहेतों में ही बांटे हुए हैं। पार्टी की बैठकों में अरविन्द केजरीवाल के इशारों को ही भगवद् इच्छा मान कर स्वीकार कर लिया जाता है। केजरीवाल ने पार्टी में अपना विरोध करने वालों व उनको भविष्य में चुनौती पेश करने वाले कद्दावर नेताओं को एक के बाद एक निस्तेज कर दिया जिन्हें अन्ततः पार्टी को छोड़ना पड़ा। याद करें कि अन्ना हजारे आन्दोलन में केजरीवाल के साथ किरण बेदी, योगेन्द्र यादव, पत्रकार आशुतोष, प्रशान्त किशोर, जनरल वीके सिंह, कुमार विश्वास, कपिल मिश्रा सहित कई ज्ञात-अज्ञात चेहरे मंच पर नजर आते थे। बाद में इनमें कइयों ने आम आदमी पार्टी की सदस्यता भी ग्रहण की और कई स्तर पर चुनाव भी लड़े, परन्तु आज वे पार्टी में दिखाई नहीं पड़ते। केजरीवाल की तानाशाह कार्यप्रणाली के चलते इन्हें या तो दूसरे दलों में जाना पड़ा या राजनीतिक हाशिए पर। दरअसल, व्यक्तिवादी व परिवारवादी दल देश की राजनीति के लिए बहुत बड़ी समस्या बन चुके हैं। इस तरह के विचारशून्य दलों में उच्च पद पर आसीन कोई भी नेता स्वेच्छा से अपना पद छोड़ने को राजी नहीं होता। केवल इतना ही नहीं, भविष्य में जो उनके लिए खतरा बने उस नेता के पर काटने में भी देर नहीं लगाई जाती। भगवन्त मान ने लोकप्रियता के मामले में अरविन्द केजरीवाल से ऐसी बड़ी लकीर खींच दी है जो पंजाब के पिछले विधानसभा चुनाव में खुद ‘आप सुप्रीमो’ भी नहीं खींच सके। सच पूछा जाए तो आज आम आदमी पार्टी में पहले-दूसरे नम्बर के नेता की बात की जाए तो मान केजरीवाल से ठीक उसी तरह आगे नजर आते हैं जैसे उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ।
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान सक्रिय हैं। उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में प्रत्येक मंत्री के लिए लक्ष्य निर्धारित किए हैं और अगर वह पूरा नहीं होता है, तो लोग “मंत्री को हटाने की मांग कर सकते हैं।” नई सरकार द्वारा शुरुआती घोषणाओं की ओर इशारा करते हुए केजरीवाल ने कहा कि भगवंत मान ने ‘केवल तीन दिनों के भीतर बहुत सारी जमीन को कवर कर लिया है।’ आप नेता भगवंत मान ने 16 मार्च को पंजाब के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। केजरीवाल ने कहा, “नए मुख्यमंत्री ने पहले ही पुराने मंत्रियों की सुरक्षा हटा दी है और जनता को सुरक्षा दी है। बर्बाद हुई फसल का मुआवजा दिया गया है।” उन्होंने कहा, “भगवंत मान ने एंटी करप्शन फोन लाइन की भी घोषणा की, जिसके बाद दिल्ली में लोगों के फोन आने लगे३ सुधार अपने आप शुरू हो गए हैं।” दरअसल पंजाब के नए मुख्यमंत्री भगवंत मान ने घोषणा की है कि महान स्वतंत्रता सेनानी शहीद भगत सिंह के शहादत दिवस पर 23 मार्च को वह एक व्हाट्स ऐप नंबर जारी करेंगे और अगर कोई सरकारी अधिकारी रिश्वत मांगता है, तो लोग इस नंबर पर बातचीत की रिकॉर्डिंग साझा कर सकते हैं। अपने शुरुआती फैसलों में से एक में, भगवंत मान ने पुलिस बल में 10,000 सहित विभिन्न राज्य विभागों में 25,000 रिक्त पदों को भरने को भी मंजूरी दी है।
केजरीवाल अपनी अहमियत कायम रखना चाहते हैं। इसीलिए मोहाली में विधायकों की बैठक को संबोधित करते हुए केजरीवाल ने कहा कि विधायकों को ‘चंडीगढ़ में नहीं बैठना चाहिए’ नहीं तो उन्हें ‘घुड़सवार कोचों की आदत हो जाएगी।’ उन्होंने कहा, ‘पार्टी का मंत्र है कि एक विधायक लोगों के बीच घूमेगा, गांवों में जाएगा।’ उन्होंने कहा, “पंजाब के लोगों ने हीरों का चयन किया है और हमें भगवंत मान के नेतृत्व में 92 लोगों की टीम के रूप में काम करना है। मैं सिर्फ उनका बड़ा भाई हूं।” अपने संबोधन में सीएम भगवंत मान ने मूल बातों की ओर लौटते हुए विधायकों से समय का पाबंद रहने, अपने निर्वाचन क्षेत्र के हर शहर में एक कार्यालय खोलने और दिन में 18 घंटे काम करने का आह्वान किया है।
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