सिखौनी
डॉ रामकृष्ण मिश्र
अइसन न कुरखेत बने घर
जेवर जाए लहना में
डाँहे गोतनी डीठ गड़ौले
रहे न छोटकी कँगना में!
पुरखन के पौती के बखरा
लागी करऽ न कोई खेल
सब गारत हो जैतो नीके
रहे के चहिओ करके मेल!!
ई दुनिया मे कौची केकर
कहिओ रहलक हे अनठेल
जे देखगर हो सब चल जैतो
काले धरतो जबर नकेल!!
राजा केतनन परतापी
धन बल के अभिमानी भैलन
के बतलावत जस गुन बाहर
राज छोड़ के कने गेलन!
ई संसार नदी पर पुलिआ
महल बना के का होतो
जेतना माया जाल बिछैवऽ
फजहत तो ओरे होतो!!
मंनुख-मनुख में भाईचारा
प्रीत निछुकका बाँटी जा
मन केकोंढा-भूसा फटकऽ
असली सत सब साटी जा!!
रामकृष्ण/गयाजी
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