चूक के साथ लापरवाही की भी जांच

चूक के साथ लापरवाही की भी जांच

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
पंजाब में गत पांच जनवरी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के काफिले को एक ओवरब्रिज पर लगभग 20 मिनट तक रुकना पड़ा। सड़क पर किसान प्रदर्शन कर रहे थे। इस मामले पर सियासत उसी समय से शुरू हो गयी थी। पीएम मोदी ने भी मार्मिक टिप्पणी की थी। उन्हांेने पंजाब के अफसरों से कहा- ‘अपने सीएम को धन्यवाद बोलना और कहना मैं जिन्दा एयरपोर्ट तक आ पाया...।’ इस मामले को लेकर पंजाब सरका रने भी जांच कमेटी गठित की है और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। कोर्ट ने 7 जनवरी को इस पर सुनवाई करते हुए गंभीर रुख अपनाया है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमना ने कहा कि हमें चूक और लापरवाही के कारणों की जांच करने की जरूरत है। चीफ जस्टिस ने सालिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि हम केवल ‘चूक’ में जा रहे हैं न कि यह किसने किया आदि मुद्दों पर। उधर, पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने एक दिन पहले कहा था कि यह जान को खतरे की नौटंकी है। इससे लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गयी सरकार को गिराने का प्रयास किया जा रहा है। इस मामले में भाजपा और कांग्रेस नेताओं के बीच आरोप-प्रत्यारोप को दौर भी चल रहा है। शिरोमणि अकाली दल ने भी कह कि रैली में भीड़ नहीं थी।
पंजाब में बुधवार (05 जनवरी) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काफिले के साथ हुई सुरक्षा चूक मामले में देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमना ने यात्रा रिकॉर्ड और जांच एजेंसियों को मिले तथ्यों को सुरक्षित रखने के निर्देश दिए हैं। इसके अलावा कोर्ट ने पंजाब पुलिस अधिकारियों, एसपीजी और अन्य एजेंसियों को सहयोग करने और पूरे रिकॉर्ड को सील करने के लिए आवश्यक कदम उठाने को कहा है। लॉयर्स वॉयस संगठन की ओर से दाखिल याचिका सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सीजेआई एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने मामले की सुनवाई की। याचिकाकर्ता की ओर से मनिंदर सिंह ने बहस की और अदालत के सामने इसे गंभीर मामला बताते हुए इसकी जांच कराने की मांग की। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और पंजाब सरकार के पैनलों को कार्यवाही न करने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई अब 10 जनवरी, को होगी। सीजेआई ने कहा कि हमें चूक, लापरवाही के कारणों की जांच करने की जरूरत है। चीफ जस्टिस ने सॉलिसिटर जनरल से कहा कि हम केवल चूक में जा रहे हैं, न कि यह किसने किया आदि मुद्दों पर। केंद्र ने मामले में एनआईए के महानिदेशक को नोडल अधिकारी बनाने का सुझाव दिया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने चंडीगढ़ के डीजी और एनआईए के एक अधिकारी को नोडल अधिकारी बनाया है। इससे पहले मनिंदर सिंह ने दलील दी कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा है, न कि किसी राज्य विशेष में कानून-व्यवस्था का मुद्दा। उन्होंने कहा कि ये काफी गंभीर मुद्दा है जिसमें पीएम 20 मिनट तक फंसे रहे। इसलिए मामले की जांच होनी चाहिए लेकिन ये जांच पंजाब सरकार नहीं कर सकती। मनिंदर सिंह ने कहा, सड़क जाम करना प्रधानमंत्री की सुरक्षा का सबसे बड़े उल्लंघन का उदाहरण है और यह एक चुनावी राज्य में हुआ। इसलिए, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इस तरह की घटनाएं दोबारा न हो उन्होंने कहा कि पंजाब सरकार को इस घटना की जांच के लिए एक पैनल नियुक्त करने का कोई विशेष अधिकार नहीं है। मनिंदर ने जोर दिया कि इस घटना पर राजनीति से ऊपर उठने और सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एक पेशेवर जांच कराने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि पंजाब सरकार ने हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश को जांच पैनल के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया है जिन पर 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिकूल टिप्पणी दर्ज की थी।
केंद्र सरकार ने भी इस याचिका का समर्थन किया है। केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ये रेयरस्ट ऑफ द रेयर मामला है। मेहता ने कहा कि इस घटना से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शर्मिंदगी हुई है और पीएम की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा पैदा हो गया है। कनाडा के आतंकवादी संगठन सिख फॉर जस्टिस की चर्चा भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान हुई। तुषार मेहता ने कहा, पीएम की सुरक्षा में चूक जिसमें राज्य शासन और पुलिस प्रशासन दोनों पर जिम्मेदारी थी, उसकी जांच राज्य सरकार नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि इस जांच में एनआईए अधिकारियों की भी उपस्थिति अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि पंजाब के गृह सचिव खुद जांच और शक के दायरे में हैं तो ऐसे में वो कैसे जांच टीम का हिस्सा हो सकते हैं? पंजाब की ओर से डीएस पटवालिया ने कहा कि निश्चित तौर पर इसकी जांच होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अदालत जांच के लिए किसी अन्य सेवानिवृत्त जज या अन्य अधिकारियों को नियुक्त कर सकती है। उन्होंने कहा कि अगर पंजाब का पैनल जांच नहीं कर सकता, तो केंद्र का पैनल भी इसकी जांच नहीं कर सकता। इसलिए अदालत एक स्वतंत्र समिति नियुक्त करे।
उधर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पंजाब दौरे के दौरान ‘सुरक्षा चूक’ को लेकर भाजपा की आलोचना का सामना कर रहे मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने आरोप लगाया कि नरेंद्र मोदी की जान को खतरे की नौटंकी का उद्देश्य राज्य में लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकार को गिराने का है। चन्नी ने कहा कि प्रधानमंत्री देश के एक सम्मानित नेता हैं, लेकिन उनके कद के नेता को इस तरह की ‘घटिया नौटंकी’ में शामिल होना शोभा नहीं देता। चन्नी ने आरोप लगाया कि भाजपा की रैली की विफलता इस तथ्य का प्रतिबिंब थी कि बुद्धिमान पंजाबियों ने पार्टी के विभाजनकारी एजेंडे को पूरी तरह से खारिज कर दिया है। मुख्यमंत्री ने दावा किया कि मोदी की जान को कोई खतरा नहीं था, बल्कि फिरोजपुर में भाजपा की रैली में लोगों की संख्या कम होने के कारण उन्होंने अपना कार्यक्रम रद्द कर दिया। उन्होंने कहा कि रैली स्थल पर खाली कुर्सियों के कारण प्रधानमंत्री सुरक्षा खतरे के तुच्छ कारण का हवाला देते हुए राष्ट्रीय राजधानी वापस चले गए। चन्नी ने आरोप लगाया कि जिस झूठे बहाने पर प्रधानमंत्री ने अपनी यात्रा रद्द की, वह ‘पंजाब को बदनाम करने और राज्य में लोकतंत्र की हत्या करने की एक बड़ी साजिश का हिस्सा है जैसा कि पूर्व में जम्मू कश्मीर में किया गया। मुख्यमंत्री ने कहा कि अगर प्रदर्शनकारी एक किलोमीटर से अधिक दूर थे तो प्रधानमंत्री की जान को खतरा कैसे हुआ। उन्होंने कहा कि जहां मोदी का काफिला रुका, वहां एक नारा भी नहीं लगा, तो उनकी जान को खतरा कैसे हो सकता था। चन्नी ने कहा कि पंजाबियों ने देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता के लिए अपने प्राणों की आहुति दी है और वे कभी भी प्रधानमंत्री के जीवन तथा सुरक्षा के लिए कोई खतरा पैदा नहीं कर सकते। मुख्यमंत्री ने कहा कि रैली में जनता की कम उपस्थिति ने राज्य में भाजपा की खराब स्थिति को उजागर कर दिया है। चन्नी ने कहा कि 70,000 कुर्सियों की जगत रैली में केवल 700 लोग मौजूद थे।
पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और शिरोमणि अकाली दल के संरक्षक प्रकाश सिंह बादल ने भी कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राज्य दौरे के दौरान किसी प्रकार की बाधा नहीं होनी चाहिए थी, सड़कें जाम नहीं की जानी चाहिए थी लेकिन दूसरी तरफ सच्चाई यह भी है कि उनकी रैली में भीड़ नहीं थी। (हिफी)
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