चुनाव में पापी भी पुण्यात्मा
(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
चुनाव लोकतंत्र के उत्सव होते हैं लेकिन स्वार्थ की राजनीति ने इस उत्सव को भी भ्रष्टाचार से सराबोर कर दिया है।पंजाब में भी पांच राज्यों के साथ विधानसभा के चुनाव होने हैं। चुनाव में कैसे भी जीत मिल जाए, इसके लिए अंधी दौड़ लग गयी है। अच्छे बुरे और पाप पुण्य का विचार ताख पर रख दिया गया है। यही कारण हज कि पंजाब के नेता इन दिनों अपनी सियासत चमकाने के लिए ‘डेरा सच्चा सौदा’ की तरफ दौड़ लगा रहे हैं, वह भी दलगत राजनीति से पूरी तरह परे होकर। डेरा सच्चा सौदा वही है जहां के मुखिया बाबा गुरुमीत राम रहीम बलात्कार और हत्या के जघन्य अपराध में जेल की रोटियां तोड़ रहे हैं। बताया जा रहा है कि पंजाब में विधानसभा चुनाव की तारीखें घोषित होते ही करीब 10-12 नेता, मंत्री, संभावित उम्मीदवार आदि बाबा गुरमीत राम रहीम के डेरा सच्चा सौदा में जाकर माथा टेक चुके हैं। इस मामले में दिलचस्प बात यह भी है कि डेरा सच्चा सौदा की तरफ दौड़ लगाने वाले नेता सभी प्रमुख दलों के हैं, फिर चाहे वह राज्य में सरकार चला रही कांग्रेस हो या फिर केंद्र की सत्ता संभाल रही भारतीय जनता पार्टी या फिर पंजाब में सरकार बनाने का मंसूबा बांध रही आम आदमी पार्टी (आप) और शिरोमणि अकाली दल (एसएडी)। डेरा सच्चा सौदा की पूरे पंजाब में करीब 84 शाखाएं हैं। इनमें से 11 शाखाएं सिर्फ बठिंडा जिले में हैं। पंजाब के मालवा क्षेत्र की 40 से अधिक सीटों पर डेरा सच्चा सौदा और उनके समर्थकों का असर है। इतना प्रभाव है कि वे किसी भी उम्मीदवार की जीत-हार तय कर सकते हैं। चुनाव आयोग ने 8 जनवरी को पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 की तारीख का ऐलान कर दिया है। राज्य में 14 फरवरी को एक ही चरण में विधानसभा की 117सीटों के लिए मतदान होगा। चुनाव नतीजे 10 मार्च को आएंगे। चुनाव आयोग ने बताया कि पंजाब में चुनाव तारीख के ऐलान के साथ ही राज्य में आदर्श चुनाव सहिंता लागू कर दी गई है। पंजाब विधानसभा का कार्यकाल 27 मार्च 2022 को खत्म हो रहा है। मिली जानकारी के पंजाब में विधानसभा चुनाव की घोषणा होने के अगले ही दिन भाजपा के हरजीत ग्रेवाल और सुरजीत ग्यानी डेरा सच्चा सौदा पहुंचे हैं जबकि कांग्रेस के विजय इंदर सिंगला (मंत्री), साधु सिंह धरमसोत, हरमिंदर जस्सी और मंगत राय बंसल भी यहां आमद दर्ज करा चुके हैं. ‘आप’ की ओर से बठिंडा (शहर) के उम्मीदवार जगरूप गिल और शिअद के उम्मीदवार दिरबा गुलजार सिंह ने भी डेरा में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। बताया जाता है कि ये सभी नेता डेरा में 9 जनवरी को हुए सतसंग में शामिल हुए थे। यह सतसंग सलाबतपुरा में हुआ था। इन नेताओं ने हालांकि अपनी इस यात्रा के पीछे राजनीतिक मकसद होने की बात को पूरी तरह खारिज किया है। डेरा सच्चा सौदा की तरफ से भी अब तक इस पर कोई टिप्पणी नहीं आई है और न ही प्रतिक्रिया. लेकिन मायने फिर भी निकाले जा रहे हैं क्योंकि इस सतसंग में डेरा की राजनीतिक मामलों की समिति के राम सिंह और राज्य समिति के सदस्य भी मौजूद थे। ध्यान रखने लायक ये भी है कि अतीत में डेरा की ओर से खुलकर अपने अनुयायियों से किसी पार्टी विशेष के समर्थन या विरोध की अपील भी जाती रही है। हालांकि अभी डेरा की ओर से यह संकेत नहीं दिया गया है कि वह इस बार अपने अनुयायियों को किसका साथ देने के लिए कहेगा या फिर तटस्थ रहेगा।
पंजाब में 9 जनवरी को संगरूर, बठिंडा और फरीदकोट जिलों में डेरा सच्चा सौदा के संस्थापक प्रमुख शाह मस्ताना जी का जन्मदिन मनाने के लिए हजारों की संख्या में उमड़ी डेरा प्रेमियों की भीड़ ने एकाएक राजनीतिक दलों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। दि ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले कुछ साल से राजनीतिक गलियारों में अनदेखी को लेकर डेरा प्रेमी काफी गुस्से में भी दिखे। यहां पर ध्यान देने की बात है कि पंजाब की सियासत में डेरे आखिरी वक्त में गेमचेंजर साबित होते हैं। हालांकि इन डेरों के प्रमुख
सीधे तौर पर अपने अनुयायियों को किसी राजनीतिक दल को समर्थन देने के लिए नहीं कहते हैं, लेकिन मतदान से एक दिन पहले किया गया इशारा सियासी फेरबदल में अपनी भूमिका निभा जाता है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक पंजाब में करीब 9 हजार सिख और करीब 12 हजार गैर सिख डेरे हैं। इन डेरों के करोड़ों प्रेमी देश भर में और विदेशों में फैले हुए हैं। डेरा सच्चा सौदा की बात करें तो यह कहा जाता है कि पंजाब 13 जिलों में करीब 35 लाख डेरा प्रेमी हैं, जबकि देश भर में इनकी संख्या करीब 2 करोड़ बताई जाती है। पंजाब में बठिंडा को डेरा सच्चा सौदा का गढ़ माना जाता है। इसके अलावा पंजाब के प्रमुख डेरों में पटियाला का राधा स्वामी सत्संग ब्यास और निरंकारी समुदाय है। मुक्तसर में दिव्य ज्योति जागृति संस्थान, डेरा सच्चा सौदा राधा स्वामी सत्संग ब्यास है। नवांशहर में दिव्य ज्योति जागृति संस्थान, गरीब दासी संप्रदाय से संबंधित डेरे हैं।कपूरथला में दिव्य ज्योति जागृति संस्थान, राधा स्वामी सत्संग ब्यास और निरंकारी समुदाय डेरा है।
इसी प्रकार अमृतसर में राधा स्वामी सत्संग ब्यास और निरंकारी समुदाय,जालंधर में दिव्य ज्योति जागृति संस्थान, डेरा सचखंड रायपुर बल्लां और निरंकारी समुदाय है।पठानकोट में डेरा जगत गिरी आश्रम है तो रोपड़ में बाबा हरनाम सिंह खालसा (धुम्मा) का डेरा, बाबा प्यारा सिंह भनियारां वाले के डेरों का प्रभाव है। तरनतारन में दिव्य ज्योति जागृति संस्थान श्रद्धालुओं का प्रमुख केंद्र है। इतिहास गवाह है कि 2017 विधानसभा चुनाव के दौरान शायद ही कोई नेता हो जो अपनी पार्टी के लिए समर्थन जुटाने के लिए इन डेरों में न पहुंचा हो।ध्यान रहे कि 2016 में राहुल गांधी डेरा ब्यास पहुंचे थे और उन्होंने वहां करीब 19 घंटे बिताए थे। इसी साल अर्थात 2016 में ही पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, पूर्व कैबिनेट मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया ने डेरा ब्यास में सोलर प्लांट का उद्घाटन किया था। मई 2016 में ही पंजाब के डिप्टी सीएम सुखबीर बादल, पंजाब कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष कैप्टन अमरिंदर सिंह और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल संत ढढरियांवाले पर हुए अटैक के बाद उनसे मिलने के लिए पटियाला में उनके डेरे पर पहुंच गए थे क्योंकि 2017 में विधानसभा चुनाव थे।सितंबर 2016 को शिक्षा मंत्री परगट सिंह और लोक इंसाफ पार्टी के बैंस बंधुओं ने डेरा ब्यास से चुनाव समर्थन के लिए बातचीत की थी। यह भी ध्यान देने की बात है कि 2017 के चुनाव से करीब पांच महीने पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह डेरा ब्यास गए थे और सितंबर 2016 को केजरीवाल ने डेरा ब्यास के प्रमुख से मुलाकात की थी। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पूर्ण बहुमत से सरकार बनायी और स्वयं मुख्यमंत्री बने जबकि अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने पहली बार किसी राज्य में मुख्य विपक्षी दल का दर्जा हासिल किया था। उल्लेखनीय है कि राम रहीम के बेअदबी के मामलों के चलते लगभग सभी राजनीतिक दलों ने डेरा सच्चा सौदा से किनारा कर लिया था, क्योंकि मामले में डेरा प्रेमियों के संलिप्त होने के आरोप थे, लेकिन डेरा सच्चा सौदा के संस्थापक प्रमुख शाह मस्ताना का जन्म दिवस मनाने जुटे इन डेरा प्रेमियों की भीड़ ने यह भी बताने की कोशिश की कि अभी भी उनकी संख्या कम नहीं है और वह एकजुट हैं। विधानसभा की117 सीटों वाले पंजाब में 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 77 सीटें जीतकर 10 साल बाद सत्ता में लौटी थी। अकाली दल-बीजेपी गठबंधन केवल 18 सीटों पर सिमट गया था और आम आदमी पार्टी 20 सीटें जीतकर मुख्य विपक्षी दल बनी। (हिफी)
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