किसान आंदोलन का सुखद अंत
(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
कहते हैं कि अंत भला तो सब भला- इसलिए लगभग एक साल से चल रहे किसान आंदोलन को अच्छे समझौते के साथ समाप्त कर दिया गया है और आंदोलनरत किसान अपने तम्बू उखाड़कर घर की तरफ रवाना होने लगे हैं। इस आंदोलन मंे लगभग 700 किसानों की जान चली गयी है। किसानों की प्रमुख मांगों पर भी सरकार से सहमति बन गयी है। मुख्य मांग तो तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की थी, जिसे पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जनता के नाम संदेश में पूरा किया, फिर संसद के दोनों सदनो से तीनों कानून वापस ले लिये गये हैं। अब इस प्रकार का कोई तनाव नहीं रहना चाहिए। किसान हमारे देश के अन्नदाता हैं और सरकार भी उनके हित की बात ही कहती है। एक-दूसरे को समझने मंे कहीं न कहीं भूल हो रही है।
केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों को लेकर शुरू हुआ किसान आंदोलन एक साल 14 दिन बाद खत्म हो रहा है। इसके साथ किसान आंदोलन में शामिल पंजाब, हरियाणा और यूपी समेत अन्य प्रदेशों के लोग अपने-अपने घरों के लिए रवाना हो जाएगे। इसके साथ 11 दिसंबर से दिल्ली के टिकरी बॉर्डर, सिंघु बॉर्डर और यूपी-गाजीपुर बॉर्डर से गुजरने वालों को बड़ी राहत मिल जाएगी, जो कि ट्रैफिक जाम की वजह से अपने घर या फिर दफ्तर देर से पहुंच रहे थे। तीन नए कृषि कानूनों की वापसी सहित कुछ अन्य मांगों को लेकर पिछले साल 26 नवंबर को सिंघु, गाजीपुर और टीकर बॉर्डर पर किसानों का आंदोलन शुरू हुआ था। एक साल से भी ज्यादा समय तक चले इस आंदोलन में किसानों ने एक तरह से बॉर्डर ही अपने घर बसा लिये थे। वहीं, तमाम सुविधाओं से लैस झोपड़ी और टेंटों में रहकर किसानों ने लंबा संघर्ष किया और अब कृषि कानूनों की वापसी होने के साथ ही किसानों की अन्य मांगों पर संयुक्त किसान मोर्चा और सरकार के बीच सहमति बन चुकी है। किसानों की तरफ से सामान समेटना शुरू किया गया है। हालांकि अभी किसानों की एक साथ घर वापसी संभव नहीं है, क्योंकि पक्के तंबू और टेंटों को हटाने में अभी 4 से 5 दिन का समय लग सकता है। बहादुरगढ़ के श्रीराम शर्मा मेट्रो स्टेशन के नीचे 10 दिसम्बर को ही किसानों ने अपने टेंट और झोपड़ी हटानी शुरू कर दी। इसके अलावा भी कुछ अन्य जगह किसान झोपड़ी और टेंट हटाकर सामान ट्रैक्टर में डाल रहे थे। संयुक्त मोर्चा ने कहा है कि वे 11 दिसंबर को रवानगी करेंगे और 13 दिसंबर को जलियांवाला बाग में मत्था टेकेंगे। आंदोलन के कारण जिन लोगों को दिक्कत हुई उनसे हाथ जोड़कर माफी मांगेंगे।
दिल्ली के बॉर्डरों पर चल रहे आंदोलन को खत्म करने का ऐलान संयुक्त किसान मोर्चा की तरफ से होते ही टीकरी, सिंघु बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर पर जश्न शुरू हो गया था। बॉर्डर पर किसान खुशी में जमकर डांस कर रहे थे। यही नहीं, इस बीच किसानों ने टेंट और झोपड़ी सड़क से उखाड़कर सामान समेटना शुरू कर दिया। किसान अपना सामान ट्रैक्टर और अन्य वाहनों में लाद रहे थे, ताकि घर वापसी की जा सके। 15 किमी. तक किसानों के टेंट और झोपड़ियां बनी हुई थीं। इनमें बहुत सी पक्की झोपड़ियां भी शामिल हैं। सिंघु बॉर्डर पर किसानों में जीत की खुशी बनी हुई है। पहले से ज्यादा भीड़ जमा है। किसानों ने खुशी-खुशी वापसी के लिए तैयारी शुरू कर दी। किसानों ने अपने साधन और साथियों को बुला लिया है, जो जीत का जश्न मना रहे हैं। इनमें से कुछ अपने तंबुओं को समेटने में लग गए हैं। खासकर पंजाब के किसानों ने अपना सामान पैक कर लिया है। वहीं, दिल्ली और यूपी के गाजीपुर बॉर्डर से भी किसानों के जश्न के वीडियो सामने आए हैं। यहां पर भी टेंट और तंबू उखाड़ने का काम शुरू हो गया है। दूसरी तरफ महिलाओं की संख्या बॉर्डर पर बहुत कम हो गई है। रोजाना होने वाली सभा और मंच 9 दिसम्बर को तो सजा, लेकिन अगले दिन बॉर्डर पर सभा नहीं हुई। किसानों का कहना है कि कृषि कानूनों की वापसी के बाद एमएसपी पर कमेटी बनाने और एक साल में दर्ज हुए मुकदमों पर लिखित आश्वासन पर सहमति बन गई है। वहीं, किसानों के लिए एंबुलेंस की व्यवस्था भी गई है, जो किसानों के जत्थे के साथ-साथ चलेगी।
एक साल से टिकरी बॉर्डर बंद होने से स्थानीय लोग ही नहीं बल्कि बहादुरगढ़ औद्योगिक क्षेत्र को भी काफी नुकसान झेलना पड़ा है। रास्तों को खुलवाने के लिए उद्योगपतियों को मानव अधिकार आयोग से लेकर कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाना पड़ा, लेकिन अब आंदोलन खत्म हो रहा था। ऐसे में स्थानीय लोगों के साथ-साथ उद्योगपतियों को भी फिर से काम पटरी पर लौटने की उम्मीद है। हालांकि पूरी तरह रास्ता साफ होने में अभी कुछ दिन और लग सकते हैं। किसानों की तरफ से कहा गया है कि वह सड़क को पूरी तरह साफ करके ही घर लौटेंगे। जबकि ऐसा ही हाल सिंघु और गाजीपुर बॉर्डर का था। अब तीनों बॉर्डर के लोगों को ट्रैफिक जाम से राहत मिल जाएगी। केंद्र सरकार द्वारा तीन नए कृषि कानूनों को रद्द करने के अलावा किसानों की अन्य मांगें मानने के बाद एक साल से चल रहा किसान आंदोलन खत्म हो गया है।
इस बीच हरियाणा में जींद के किसान नेताओं ने घोषणा की कि अब वे भाजपा-जजपा नेताओं का बहिष्कार नहीं करेंगे और दोनों दलों के नेता गांवों में आकर जनसभा कर सकते हैं। तीन कृषि कानूनों के निरस्त होने के बाद भी किसानों ने सरकार के सामने नई मांगें रखी थीं। इनमें सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में आंदोलन के दौरान किसानों के खिलाफ दर्ज सभी मामले वापस लेने, आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले किसानों के परिवारों को मुआवजा, पराली जलाने पर कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं होने, इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल पर चर्चा की बात शामिल थी। बता दें कि आंदोलन करने वाले 40 किसान संगठनों का नेतृत्व कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने तीन कृषि कानूनों के खिलाफ एक साल से अधिक समय से जारी प्रदर्शन को स्थगित करने का फैसला किया है। इसके साथ घोषणा की है कि किसान 11 दिसंबर को दिल्ली की सीमाओं वाले विरोध स्थलों से घर लौट जाएंगे। जींद की महिला किसान नेता सिक्किम देवी ने कहा कि किसानों की जीत हुई है और जब दिल्ली सीमा से हरियाणा में किसान आएंगे तो उनका भव्य स्वागत किया जाएगा और जल्द ही टोल को भी खाली किया जाएगा। इसके साथ उन्होंने कहा, ‘अब हम भाजपा और जजपा के नेताओं का बहिष्कार नही करेंगे। अब वे गांव में आ जा सकते हैं और कोई भी रैली या जनसभा कर सकते है।
किसान नेता आजाद पालवां का कहना था कि उचाना में राष्ट्रीय राजमार्ग पर किसानों की आखरी ट्रॉली नहीं गुजरने तक लंगर की सेवा सुचारू रूप से चलती रहेगी। इसके साथ उन्होंने कहा कि खटकड़ टोल प्लाजा पर चल रहा धरना भी 11 दिसम्बर को खत्म कर दिया जाएगा। वहीं, किसान संगठन के नेताओं ने यह भी कहा कि वे दिल्ली की सीमाओं से वापस आने वाले किसानों का सम्मान करने की तैयारी भी कर रहे हैं। (हिफी)
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