खुद नहीं, जनता को सुधारेंगे

खुद नहीं, जनता को सुधारेंगे

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
लगभग एक महीने बाद ही हम 72वां गणतंत्र दिवस मनाएंगे। यह वही दिन है जब हमने अपना संविधान अपनाया था अर्थात पूरी तरह से आजाद राष्ट्र की तरह रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था । मैंने जब से स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस मनाना शुरू किया, मुझे याद है एक गीत भी गाया जाता था- तूफान से लाये हैं हम कश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के। बहुत प्रेरणा छिपी है इसमें हमारे देश के स्वाधीनता सेनानियों और शहीदों की लेकिन मौजूदा दौर के नेताओं ने इसका अपने अनुसार मतलब निकाल लिया है। उनके लिए जनता ही बच्चों की तरह है। इसलिए देश को संभालने की जिम्मेदारी जनता को सौंप देते हैं। चुनाव सुधार की बातें बहुत पहले से की जा रही हैं। सुप्रीम कोर्ट और निर्वाचन आयोग भी सरकार से अपेक्षा कर चुके हैं कि चुनाव प्रक्रिया में कुछ ऐसे सुधार किये जाएँ जिससे अपराधी प्रवृत्ति के लोग चुनाव लड़ ही न सकें । इसके अलावा दो दो सीटों से चुनाव लड़ना अथवा सांसद होते हुए विधायक का चुनाव या विधायक होते सांसद का चुनाव लड़ने से हतोत्साहित किया जाए। यूपीए की सरकार से लेकर मौजूदा राजग सरकार तक इस पर ध्यान नहीं दे रही है लेकिन जनता को इस प्रकार जकड़कर रखने का प्रयास किया जा रहा है जिससे चुनाव की शुचिता बनी रहे। अभी हाल ही मोदी सरकार ने चुनाव अधिनियम संशोधन विधेयक 2021’ निचले सदन से विपक्षी विरोध के बीच पास कराया है। इस विधेयक के माध्यम से जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में संशोधन किए जाने का प्रस्ताव किया गया है। केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने इस बिल को पेश किया। वोटर कार्ड को आधार से लिंक कर दिया जाएगा। इस प्रकार मतदाता एक ही स्थान पर मतदान कर सकेगा। अच्छी बात है होना भी यही चाहिए लेकिन आपराधिक पृष्ठभूमि के लोग भी संसद या विधान सभा में नहीं पहुँचने चाहिए। इसके लिए कानून में संशोधन क्यों नहीं किया जाता। नेताओं की चालाकी की वजह से उपचुनाव कराने और जनता के टैक्स से की गयी कमायी को बर्बाद करने की नौबत क्यों आती है?

कुछ दिनों पहले ही देश में चुनाव सुधार से जुड़ा हुआ आधार कार्ड को वोटर आईडी से लिंक करने वाला विधेयक लोकसभा में पास हो गया। ‘चुनाव अधिनियम संशोधन विधेयक 2021’ निचले सदन से विपक्षी विरोध के बीच पास हुआ है। इस विधेयक के माध्यम से जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में संशोधन किए जाने का प्रस्ताव किया गया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इससे पूर्व चुनाव सुधारों से जुड़े इस विधेयक के मसौदे को अपनी मंजूरी दी थी। इस विधेयक के मसौदे में कहा गया है कि मतदाता सूची में दोहराव और फर्जी मतदान रोकने के लिए मतदाता कार्ड और सूची को आधार कार्ड से जोड़ा जाएगा। विधेयक के मुताबिक, चुनाव संबंधी कानून को सैन्य मतदाताओं के लिए भी लैंगिक निरपेक्ष बनाया जाएगा।विपक्ष का कहना है कि आधार कार्ड को निवास स्थान के प्रूफ के तौर पर लाया गया था न कि नागरिकता पहचान पत्र के रूप में। अगर आप एक वोटर से आधार कार्ड के बारे में पूछ रहे हैं तो इसमें आपको सिर्फ वोटर के निवास स्थान की जानकारी मिलेगी। इस तरीके से आप उन्हें भी मताधिकार दे रहे हैं जो इस वक्त देश के निवासी नहीं हैं। कांग्रेस, डीएमके, शरद पवार की नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना और बीएसपी ने नए विधेयक का विरोध किया है। वाईएसआर कांग्रेस ने भी इस बिल की समीक्षा और बहस की मांग की है। वाईएसआर कांग्रेस ने कहा है कि बहस के बाद सरकार को इस बिल को और व्यापक रूप में लाना चाहिए। नवीन पटनायक की बीजू जनता दल ने भी इस बिल को जिस तरीके से लोकसभा में लाया गया और पास किया गया, उसका विरोध किया है।

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 15 दिसम्बर को चुनाव सुधारों से जुड़े इस विधेयक के मसौदे को अपनी मंजूरी दी थी। निर्वाचन आयोग पात्र लोगों को मतदाता के रूप में पंजीकरण कराने की अनुमति देने के लिए कई ‘कट ऑफ तारीख’ की वकालत करता रहा है।अब नए विधेयक में कहा गया कि संशोधन में मतदाता पंजीकरण के लिए हर वर्ष चार ‘कट ऑफ तिथियों’-एक जनवरी, एक अप्रैल, एक जुलाई तथा एक अक्टूबर- रखने का प्रस्ताव है। इससे पहले मार्च में, उस समय विधि मंत्री रहे रविशंकर प्रसाद ने लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में जानकारी दी थी कि निर्वाचन आयोग ने मतदाता सूची से आधार प्रणाली को जोड़ने का प्रस्ताव किया है, ताकि कोई व्यक्ति विभिन्न स्थानों पर कई बार पंजीकरण न करा सके।निर्वाचन आयोग की यह बात तो सरकार ने मान ली लेकिन निर्वाचन आयोग ने यह भी तो कहा था कि अगर कोई व्यक्ति एक से अधिक सीटों पर चुनाव लडता है और दोनों सीटों पर जीत भी जाता है तो एक सीट पर यदि उपचुनाव होता है तो उसका सम्पूर्ण व्यय उसी सांसद या विधायक को देना चाहिए। जाहिर है उपचुनाव इसीलिए कराना पड़ा क्योंकि एक उम्मीदवार ने दो सीटों से चुनाव लड़ा। अब यह कहने से काम नहीं चलेगा कि संविधान में इस प्रकार का अधिनियम है। संविधान का जो प्रारूप 26 नवम्बर 1949 को संविधान सभा ने देश को सौंपा था, उसमें सौ से ज्यादा संशोधन किये जा चुके हैं। एक और संशोधन हो जाएगा तो कौन सा पहाड टूट पड़ेगा लेकिन यह मामला तो कथित जनप्रतिनिधियों से जुड़ा है, इसलिए इस तरफ से आंखें मूंद ली गयी हैं और जनता से अपेक्षा की जाती है कि वो चुनाव की शुचिता बनाए रखे।

कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने मोदी सरकार के इस बिल के पेश होने का विरोध किया है लेकिन वे भी ऐसा कोई संशोधन नहीं चाहते जिसकी जकड़ में उनके नेता आ जाएं। कांग्रेस नेता अधीर रंजन चैधरी, मनीष तिवारी और एआईएमआईएम चीफ ओवैसी ने बिल को पेश करने का विरोध यह कहते हुए किया कि यह सरकार के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने भी बिल पेश होने का विरोध किया। बीएसपी के रितेश पांडे भी इस बिल के विरोध में नजर आए. हालांकि कानून मंत्री किरण रिजिजू ने विपक्ष के तर्कों को खारिज किया और कहा,सरकार की कोशिश है कि बोगस वोटिंग रुकनी चाहिए। लोकसभा में पेश किए गये बिल के मुद्दे पर असदुद्दीन ओवैसी ने कहा यह लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं। कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा कि आधार सिर्फ रिहायश का प्रूफ है नागरिकता का नहीं। अगर आप मतदाताओं के लिए आधार मांगने की स्थिति में हैं, तो आपको केवल एक दस्तावेज मिल रहा है जो नागरिकता नहीं बल्कि निवास दर्शाता है। आप संभावित रूप से गैर-नागरिकों को वोट दे रहे हैं। इस प्रकार सत्ता पक्ष और विपक्ष में से किसी ने भी उन चुनाव सुधारों की चर्चा तक नहीं की जो कथित जनप्रतिनिधियों से संबंध रखते हैं। वे अपने को उन्हीं कश्ती निकाल कर लाने वालों की पंक्ति में खड़ा कर लेते हैं और जनता से कहते हैं इस देश को संभाल कर रखने की जिम्मेदारी तो तुम्हारी है। धन्य है महान जनप्रतिनिधि। (हिफी)
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