हंसते हुए
-नरेश अग्रवाल।
कहते हैं उम्र के साथ
आदमी बदल जाता है
कठोर होता जाता है
मेरी मां कहां हुई?
अभी भी तरल बूंद की तरह
हाथों में लूं तो मोती
आंखों में रखूं तो शीतलता
गले मिलूं तो प्यास बुझाती हुई
फूंक मारूं तो हिलती भी नहीं
सचमुच हल्की पर बहुत मजबूत
उसकी आंखें भी बहुत तेज
मेरे वैसे दुखों को पहचान लेती
जिनसे मैं भी अनभिज्ञ
कई बार इन्हें पोंछ कर
हाथों में ले लेती
सभी सिमट जाते एक बूंद में
जिसे अपनी आंखों में रख कर
हंसते हुए मेरी ओर खुशी से देखती
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