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भारत पर भ्रण्टाचार की कालिख

भारत पर भ्रण्टाचार की कालिख

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
भ्रष्टाचार का इतिहास भी बहुत पुराना है और दुनिया भर में इसने अपना साम्राज्य स्थापित कर रखा है। विशेष रूप से दूसरे विश्व युद्ध के समय को देखें तो सभी जरूरी वस्तुओं का अकाल सा हो गया था और उन आपदा के क्षणों में कुछ लोग कमाई कर रहे थे। बाजारवाद और भोगवाद ने इसे चरम पर पहुंचा दिया।
दुनिया भर में 9 दिसंबर को भ्रष्टाचार उन्मूलन दिवस मनाया जाता है, ठीक उसी तरह जैसे हम प्रत्येक वर्ष विजय दशमी (दशहरे) के दिन रावण को जलाते हैं। अफसोस कि न तो अबतक अहंकार रूपी रावण को जला सके और न भ्रष्टाचार को ही दूर कर पाये। करप्शन परसेप्शन इन्डेक्स (सीपीआई) के नाम से अभी हाल में जो रिपोर्ट प्रकाशित हुई है, उसके अनुसार पिछले 15 वर्ष में किसी भी देश में भ्रष्टाचार के मामले मंे कोई महत्वपूर्ण सुधार नहीं हुआ। यह रिपोर्ट प्रतिवर्ष प्रकाशित होती है। करप्शन इंडेक्स-2021 के अनुसार भारत विश्व रैंकिंग में 82वें स्थान पर है। दुनिया भर में 194 देश हैं। भ्रष्टाचार का इतिहास भी बहुत पुराना है और दुनिया भर में इसने अपना साम्राज्य स्थापित कर रखा है। विशेष रूप से दूसरे विश्व युद्ध के समय को देखें तो सभी जरूरी वस्तुओं का अकाल सा हो गया था और उन आपदा के क्षणों में कुछ लोग कमाई कर रहे थे। बाजारवाद और भोगवाद ने इसे चरम पर पहुंचा दिया।
भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 31 अक्टूबर, 2003 को भ्रष्टाचार के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन बुलाया था। अंतराष्ट्रीय कमेटी ने माना कि भ्रष्टाचार एक जघन्य कृत्य है किसी लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा है। हर साल करप्शन परसेप्शन इंडेक्स के नाम से एक रिपोर्ट प्रकाशित होती है। यह रिपोर्ट बताती है कि कौन से देशों में कितना भ्रष्टाचार है और इसे नियंत्रित करने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं। इस रिपोर्ट की मानें तो पिछले 15 वर्षों में किसी भी देश में कोई महत्वपूर्ण प्रगति नहीं देखी जा सकी है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 2021 अंतर्राष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस यह देखने के लिए मनाया जा रहा है कि सरकारें, सिविल सेवक सहित अंतर्राष्ट्रीय हस्तियां अपने देशों में बढ़ रहे भ्रष्टाचार से निपटने के लिए क्या कदम उठा रही हैं। इससे पहले नवंबर में, संयुक्त राष्ट्र द्वारा छह सप्ताह का अभियान शुरू किया गया था जिसमें प्रत्येक सप्ताह प्रमुख विषयों पर ध्यान केंद्रित किया जाता था। यह अभियान भ्रष्टाचार का मुकाबला करने, अधिकारियों को अवैध रूप से धन लेने से रोकने के लिए चलाया गया था। इसका थीम आपका अधिकार, आपकी भूमिका भ्रष्टाचार को ना कहें निर्धारित किया गया था। अभियान का उद्देश्य भ्रष्टाचार के खिलाफ रुख अपनाने के लिए राष्ट्रों के बीच संबंधों को मजबूत करना, भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए समाधान विकसित करना, भ्रष्ट धन की वसूली आदि करना था। बता दें कि 2021 के करप्शन इंडेक्स में, भारत विश्व रैंकिंग में 194 देशों में से 82वें स्थान पर है। यूएन द्वारा तैयार की गई सूची के अनुसार, 2021 में, उत्तर कोरिया और तुर्कमेनिस्तान में भ्रष्टाचार का सबसे अधिक जोखिम था, जबकि डेनमार्क, नॉर्वे और फिनलैंड जैसे स्कैंडिनेवियाई देशों में सबसे कम भ्रष्टाचार है।
2020 में, भारत इस लिस्ट में 77 वें स्थान पर था, लेकिन 44 के स्कोर के साथ अपनी रैंक से 5 पायदान नीचे खिसक गया है। हालांकि, भारत ने चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अन्य पड़ोसी देशों से बेहतर प्रदर्शन किया। केवल भूटान ने 62वां स्थान प्राप्त किया है, जो सीमावर्ती देशों में भारत से अधिक है।
भारत में भ्रष्टाचार का इतिहास बहुत पुराना है। भारत की आजादी के पूर्व अंग्रंजों ने सुविधाएं प्राप्त करने के लिए भारत के सम्पन्न लोगों को सुविधास्वरूप धन देना प्रारंभ किया। राजे-रजवाड़े और साहूकारों को धन देकर उनसे वे सब प्राप्त कर लेते थे जो उन्हे चाहिए था। अंग्रेज भारत के रईसों को धन देकर अपने ही देश के साथ गद्दारी करने के लिए कहा करते थे और ये रईस ऐसा ही करते थे। यह भ्रष्टाचार वहीं से प्रारम्भ हुआ और तब से आज तक लगातार चलते हुए फल फूल रहा है।
बाबरनामा में उल्लेख है कि कैसे मुट्ठी भर बाहरी हमलावर भारत की सड़कों से गुजरते थे। सड़क के दोनों ओर लाखों की संख्या में खड़े लोग मूकदर्शक बन कर तमाशा देखते थे। बाहरी आक्रमणकारियों ने कहा है कि यह मूकदर्शक बनी भीड़, अगर हमलावरों पर टूट पड़ती, तो भारत के हालात भिन्न होते। इसी तरह पलासी की लड़ाई में एक तरफ लाखों की सेना, दूसरी तरफ अंगरेजों के साथ मुट्ठी भर सिपाही, पर भारतीय हार गये। एक तरफ 50,000 भारतीयों की फौज, दूसरी ओर अंगरेजों के 3000 सिपाही। पर अंगरेज जीते। भारत फिर गुलाम हआ। जब बख्तियार खिलजी ने नालंदा पर ग्यारहवीं शताब्दी में आक्रमण किया, तो क्या हालात थे? खिलजी की सौ से भी कम सिपाहियों की फौज ने नालंदा के दस हजार से अधिक भिक्षुओं को भागने पर मजबूर कर दिया। नालंदा का विश्वप्रसिद्ध पुस्तकालय वषों तक सुलगता रहा। आजादी के बाद 1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था को उदारीकरण एवं वैश्वीकरण की विश्वव्यापी राजनीति-अर्थशास्त्र से जोड़ा गया।
पहले भ्रष्टाचार के लिए परमिट-लाइसेंस राज को दोष दिया जाता था, पर जब से देश में वैश्वीकरण, निजीकरण, उदारीकरण, विदेशीकरण, बाजारीकरण एवं विनियमन की नीतियां आई हैं, तब से घोटालों की बाढ़ आ गई है। इन्हीं के साथ बाजारवाद, भोगवाद, विलासिता तथा उपभोक्ता संस्कृति का भी जबर्दस्त हमला शुरू हुआ है।
आजादी से अब तक देश में काफी बड़े घोटालों का इतिहास रहा है। आजादी के बाद 1948 भारत सरकार ने एक लंदन की कंपनी से 2000 जीपों को सौदा किया। सौदा 80 लाख रुपये का था लेकिन केवल 155 जीप ही मिल पाई। घोटाले में ब्रिटेन में मौजूद तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त वी।के। कृष्ण मेनन का हाथ होने की बात सामने आई लेकिन 1955 में केस बंद कर दिया गया। जल्द ही मेनन नेहरु केबिनेट में शामिल हो गए।
इसके बाद 1951 तत्कालीन वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के सेकरेटरी एस.ए. वेंकटरमन ने एक कंपनी को साइकिल आयात कोटा दिए जाने के बदले में रिश्वत ली। इसके लिए उन्हें जेल जाना पड़ा। इसी तरह 1958 हरिदास मुंध्रा द्वारा स्थापित छह कंपनियों में लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के 1.2 करोड़ रुपये से संबंधित मामला उजागर हुआ। इसमें तत्कालीन वित्त मंत्री टीटी कृष्णामचारी, वित्त सचिव एचत्र.एम. पटेल, एलआईसी चेयरमैन एल एस वैद्ययानाथन का नाम आया। कृष्णामचारी को इस्तीफा देना पड़ा और मुंध्रा को जेल जाना पड़ा।
भ्रष्टाचार की 1960 में एक बिजनेसमैन धर्म तेजा ने एक शिपिंग कंपनी शुरू करने केलिए सरकार से 22 करोड़ रुपये का लोन लिया। लेकिन बाद में धनराशि को देश से बाहर भेज दिया। उन्हें यूरोप में गिरफ्तार किया गया और छह साल की कैद हुई। इसी तरह पटनायक मामला 1961 में उड़ीसा के मुख्यमंत्री बीजू पटनायक को इस्तीफा देने केलिए मजबूर किया गया। उन पर अपनी निजी स्वामित्व कंपनी कलिंग ट्यूब्स को एक सरकारी कांट्रेक्ट दिलाने केलिए मदद करने का आरोप था। मारुति कंपनी बनने से पहले यहां एक घोटाला हुआ जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का नाम आया। मामले में पेसेंजर कार बनाने का लाइसेंस देने के लिए संजय गांधी की मदद की गई थी। इसके बाद 1976 में तेल के गिरते दामों के मददेनजर इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ने हांग कांग की एक फर्जी कंपनी से ऑयल डील की। इसमें भारत सरकार को 13 करोड़ का चूना लगा। माना गया इस घपले में इंदिरा और संजय गांधी का भी हाथ है। अंतुले ट्रस्ट ने 1981 में महाराष्ट्र में सीमेंट घोटाला किया। तत्कालीन महाराष्ट्र मुख्यमंत्री एआर अंतुले पर आरोप लगा कि वह लोगों के कल्याण के लिए प्रयोग किए जाने वाला सीमेंट, प्राइवेट बिल्डर्स को दे रहे हैं।
हम मानते हैं कि भ्रष्टाचार की नदी भी ऊपर से नीचे की तरफ ही बहती है। इसलिए पेशकार फरियादियों से और सिपाही ठेले वाले से पैसे वसूलना अपना नैतिक कर्तव्य समझने लगा है। (हिफी)

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