संविधान दिवस पर सीजेआई की सीख
(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
सुप्रीम कोर्ट में 26 नवम्बर को संविधान दिवस समारोह का आयोजन किया गया । इस दौरान चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एन वी रमन्ना ने सरकार को भी सीख दी और कहा, सामान्य धारणा है कि न्याय देना केवल न्यायपालिका का कार्य है लेकिन इतना भर ही सही नहीं है। यह तीनों अंगों पर निर्भर करता है। विधायिका और कार्यपालिका द्वारा किसी भी किस्म की नजरअंदाजी से न्यायपालिका पर केवल अधिक बोझ पड़ेगा बल्कि कभी-कभी न्यायपालिका केवल कार्यपालिका को धक्का देती है। उन्होंने कहा संसद में कानून बनाने से पहले उसका असर देखना चाहिए। विधायिका कानून के असर का अध्ययन किये बिना ही कानून पारित कर रही हैं, जो एक बड़ी समस्या बनने वाली है। सीजेआई का इशारा तीन विवादास्पद कृषि कानूनों की तरफ भी हो सकता है, जिनको प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वापस लेने की बात कही और संसद के दोनों सदनों ने उसे वापस भी ले लिया। किसानों के आंदोलन का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा है। इस तरह के अन्य कई मामले भी आते रहे हैं,जिससे यह लगा कि सुप्रीम कोर्ट विधायिका के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप कर रहा है। सीजेआई ने इसे भी स्पष्ट करने का प्रयास किया है। इससे विपक्षी राजनीतिक दलों को यह मुगालता भी नहीं पालना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के खिलाफ उनको कोई मुद्दा दे दिया है। विपक्षी दल भी इस मामले में उतने ही दोषी हैं क्योंकि संसद में जब विधेयक पर स्वस्थ बहस का समय आता है, तब विपक्षी दलों के नेता शोर मचाते हैं अथवा बहिष्कार कर जाते हैं। इसलिए सीजेआई की सीख उनके लिए भी है।
सीजेआई ने कहा कि संसद ने निगेशिएबुल इनस्ट्रूमेंट एक्ट को आपराधिक बना दिया है लेकिन इसमें यह नहीं देखा कि इससे मजिस्ट्रेट अदालतें बेहद दबाव में आ गयी हैं। उन्होंने कहा कि मौजूदा अदालतों को ही कमर्शियल कोर्ट में तब्दील किया जा रहा है लेकिन इससे समस्या का समाधान नहीं होगा। ध्यान रहे सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों केन्द्र सरकार को निर्देश दिया था कि वो उपभोक्ता संरक्षण कानून- 2019 के असर का अध्ययन करे।
भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना ने कहा कि भारतीय संविधान की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता शायद यह तथ्य है कि यह बहस के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में अपने भाषण में सीजेआई रमन्ना ने कहा कि इस प्रकार की बहसों और चर्चा के माध्यम से राष्ट्र प्रगति करता है, विकसित होता है। उन्होंने इस प्रक्रिया में वकीलों और न्यायाधीशों की भूमिका पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा, इस प्रक्रिया में सबसे प्रत्यक्ष और दृश्यमान खिलाड़ी निश्चित रूप से इस देश के वकील और जज हैं। इस अवसर पर कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा था कि संविधान शक्तियों के पृथक्करण का प्रावधान करता है। यह सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक न्याय के लिए तीन अंगों, कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के बीच सामंजस्यपूर्ण संबंध की भी परिकल्पना करता है। मेरा विचार है कि मौलिक अधिकारों पर मौलिक कर्तव्य को प्रधानता मिलनी चाहिए। यहां पर ध्यान देने की बात यह भी है कि सुप्रीम कोर्ट में आपराधिक मामलों में दोषी नेताओं को चुनाव लड़ने से अयोग्य करार देने के लिए याचिका दायर हुई है। इस बारे में सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही सरकार से कह रखा है कि इस तरह का कानून बनाना चाहिए जिससे अपराधी प्रवृत्ति के लोग चुनाव लड़ ही न सकें। कानून मंत्री किरण रिजिजू के संकेत को समझते हुए सीजेआई ने कहा, न्यायपालिका कार्यपालिका की भूमिका या उसे हड़पती नहीं है। एक संस्था को दूसरी संस्था के खिलाफ चित्रित करने या एक विंग को दूसरे के खिलाफ रखने की उसकी शक्तियां केवल लोकतंत्र के लिए एक गलतफहमी पैदा करती हैं। यह लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
सीजेआई ने जजों पर हमले की चर्चा करते हुए कहा कि जजों पर हमले हो रहे हैं. न केवल शारीरिक बल्कि सोशल मीडिया के जरिए भी। कानून प्रवर्तन अधिकारियों को इस संबंध में जजों की उनकी सहायता के लिए आगे आकर मदद करनी चाहिए। सीजेआई ने प्रधानमंत्री से सुप्रीम कोर्ट के आंतरिक ढांचे में सुधार के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समितियों द्वारा की गई सिफारिशों पर विचार करने की अपील की। उन्होंने कहा सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में रिक्तियों को तेजी से भरने के लिए कॉलेजियम अच्छी तरह से काम कर रहा है। हमें इस मामले में केंद्र सरकार से सहयोग की उम्मीद है। चीफ जस्टिस ने भारत के संविधान के बारे में भी बात की और बताया कि कैसे निर्माताओं द्वारा रखी गई नींव पर, यह 1949 में अपनाए गए दस्तावेज की तुलना में अधिक समृद्ध और जटिल दस्तावेज बन चुका है। अपने भाषण में सीजेआई ने वकीलों की जिम्मेदारी पर जोर दिया। उन्होंने कहा, संविधान और कानूनों के बारे में अंतरंग ज्ञान रखने वाले लोग बाकी नागरिकों को समाज में उनकी भूमिका के बारे में शिक्षित करते हैं। उन्होंने कहा, आप उन महापुरुषों और महिलाओं के नक्शेकदम पर चल रहे हैं जिन्होंने इस राष्ट्र का विजन डॉक्यूमेंट बनाया और उस विजन को फिर से परिभाषित करने में प्रत्यक्ष भागीदार भी हैं। इस राष्ट्र का इतिहास, वर्तमान और भविष्य आपके कंधों पर है। सीजेआई ने अटार्नी जनरल के के वेणुगापाल को भी इस तरह से जवाब दे दिया जिन्होंने कहा था सुप्रीम कोर्ट ने अपना दायरा बढ़ा दिया है। यह सिर्फ एक संवैधानिक न्यायालय नहीं है, एक अदालत है जो सभी मामलों की सुनवाई करती है। सुप्रीम कोर्ट आपराधिक, जमीन, पारिवारिक मामले आदि की सुनवाई करता है। इसे कम किया जाए। यह सभी मुद्दों पर विभिन्न हाईकोर्ट की अपील सुनता है। हाईकोर्ट के फैसलों की वैधता की जांच करता है। यह सही मायने में संवैधानिक न्यायालय नहीं है। उन्होंने कहा, भूमि नियंत्रण, संपत्ति, वैवाहिक आदि जैसे मामलों का कोई संवैधानिक मूल्य नहीं है। ट्रायल कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक एक आपराधिक मामले का फैसला आने में 30 साल लग जाते हैं। अटॉर्नी जनरल ने कहा कि संवैधानिक मामलों की सुनवाई के
लिए 5 जजों के साथ 3 संवैधानिक बेंच स्थायी रूप से स्थापित की जाएं। मुझे लगता है कि सुप्रीम कोर्ट के
पूरे ढांचे को बदलने का समय आ गया है। इसीलिए सीजेआई ने कहा कि सिर्फ न्यायपालिका पर ही न्याय का दायित्व डालना उचित नहीं है। (हिफी)
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